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एस धम्मो सनंतनो
सर के लिए गफलत है दिल के लिए बेदारी और दिल के लिए होश है, जाग जाना है। अगर तुम सदगुरु के पास सिर के साथ ही गए, सिर लेकर गए, सिर से ही सदगुरु का आगमन हुआ तुम्हारे भीतर और आना-जाना चला, सिर ही खुला रहा और हृदय बंद रहा, तो तुम और भी गफलत से भरकर लौटोगे; और भी बेहोश होकर लौटोगे। तुम और भी पंडित होकर लौटोगे। वैसे ही तुम काफी ज्ञानी थे। तुम्हारे ज्ञान में थोड़ी मात्रा और बढ़ जाएगी। ऐसे ही तुम काफी जानते थे अब तुम और होशियार हो जाओगे। सदगुरु के पास जाकर तुम थोड़ी सूचनाएं और इकट्ठी कर लोगे। जानकारियां इकट्ठी कर लोगे। थोड़ा शास्त्र-ज्ञान बढ़ जाएगा। तुम और कुशल हो जाओगे। तुम्हारी खोपड़ी और थोड़ी वजनी हो जाएगी। नाव में और थोड़े पत्थर इकट्ठे हो जाएंगे। गर्दन पर और थोड़ी . चट्टान लटक जाएगी। डूबना आसान हो जाएगा, पार होना और मुश्किल हो जाएगा। शास्त्रों को सिर पर रखकर कभी कोई पार हुआ है? तुमने कभी सुना कि पंडित कभी मोक्ष को उपलब्ध हुआ हो? ____पंडित से मेरा अर्थ है, जिसका सिर भारी। पंडित से मेरा वही अर्थ नहीं, जो बुद्ध का है। बुद्ध के समय पंडित शब्द अभी भी विकृत न हुआ था। अभी भी उसका अर्थ थाः प्रज्ञावान, जागा हुआ। पंडित का वही अर्थ था, जो बुद्ध का अर्थ है।
अब तो पंडित का अर्थ है, जिसने उधार जूठन इकट्ठी कर ली है। इधर से, उधर से कचरा इकट्ठा कर लिया है। कचरे की ही संपत्ति का ढेर लगाकर उसके ऊपर बैठ गया है। उधार से कभी कोई पार हुआ? नगद चाहिए अनुभव। '
तो अगर तुम पंडित हो तो तुम ऐसे हो, जैसे चिकना घड़ा हो। वर्षा होती है, छूता नहीं। सब बह जाता है।
इक जाम में घोली है बेहोशी-ओ-होशियारी
सर के लिए गफलत है दिल के लिए बेदारी कहां से लोगे, इस पर निर्भर है। मुझे सुनते हो तुम; कहां से सुनते हो? सिर से सुनते हो, मस्तिष्क से सुनते हो, विचारों से सुनते हो? या निर्विचार से, ध्यान से, प्रेम से? श्रद्धा का द्वार खोलते हो मेरे लिए या विचार का?
अपने भीतर देखना। दोनों झरोखे संभव हैं। और दोनों का स्वाद अलग-अलग। अगर सिर से तुम सुनते हो, तो तुम धीरे-धीरे जानकार होते चले जाओगे। लेकिन अगर हृदय से तुम सुनते हो, तो तुम धीरे-धीरे और भी अपने
अज्ञान से भरते चले जाओगे। विनम्र होओगे। जानोगे, कुछ भी तो जानता नहीं। चुप होने लगोगे, मौन होने लगोगे। अवाक रह जाओगे। ठिठकोगे। और उसी अवाक रह जाने में समझ का जन्म है। समझदारी में नहीं, नासमझी के बोध में समझ का जन्म है। ___ इधर बहुत वर्षों में बहुत तरह के लोग मेरे निकट आए। धीरे-धीरे मुझे अनुभव
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