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एस धम्मो सनंतनो
कहा कि हमें जरूरत ही नहीं है, दाम का क्या सवाल ? दाम तो जरूरत से होता है। हटाओ अपने पत्थर को। पर किसी ने कहा कि ठीक है, सब्जी तौलने के काम आ जाएगा। तो दो पैसे ले लो, चार पैसे ले लो, पत्थर रंगीन है।
पर झुन्नून ने कहा था, बेचना मत, सिर्फ दाम पूछकर आ जाना। ज्यादा से ज्यादा कितने दाम मिल सकते हैं? सब तरफ पूछकर आ गया, चार पैसे से ज्यादा कोई देने को तैयार न था ।
आकर कहा कि चार पैसे से ज्यादा कोई देने को तैयार नहीं है। बहुत तो लेने को ही तैयार नहीं। बहुतों ने तो झिड़का कि हटो यहां से, सुबह का वक्त ! हम ग्राहकों से बात करें, कि यह पत्थर लेकर आ गए! शाम को आना। किसी ने उत्सुकता भी दिखाई तो इसीलिए कि सब्जी तौलने के काम आ जाएगा। एक आदमी ऐसा भी मिला, उसने कहा कि कोई काम क़ा तो नहीं, लेकिन बच्चे खेलेंगे। अब तुम ले आए हो तो चलो, चार पैसे ले लो। बड़ी दया से उन्होंने चार पैसे देने को कहा है। बेच आऊं ?
गुरु ने कहा, अब तू ऐसा कर, सोने-चांदी के बाजार में चला जा, वहां पूछ आ। लेकिन बेचना नहीं है, सिर्फ दाम पता लगाने हैं। वह वहां गया, वह तो हैरान होकर लौटा। सोने-चांदी के दुकानदार हजार रुपया देने को तैयार थे। भरोसा ही न आया। कहां चार पैसे, कहां हजार रुपए ! बहुत फर्क हो गया । लगा कि बेच ही दे । जो आदमी दे रहा है हजार रुपए; फिर दे या न दे, कल बदल जाए। पर गुरु ने मना किया था। लौटकर आया। कहा, कि अब रोकना ठीक नहीं। हजार रुपए देने वाला एक आदमी मिल गया। पांच सौ से कम में तो किसी ने मांगा ही नहीं ।
गुरु ने कहा, अब तू ऐसा कर बेच मत देना । अब तू जाकर हीरे-जवाहरात जहां बिकते हैं, जौहरी और पारखी जहां हैं, वहां ले जा; लेकिन बेचना नहीं है। चाहे कोई कितना ही दे और तेरे मन में कितना ही उत्साह आ जाए, बेचना भर नहीं ।
वहां गया तो चकित हो गया। वहां तो लोग दस लाख रुपया तक देने को तैयार थे उस पत्थर के । वह तो पगलाने लगा। कहां दो पैसे और कहां दस लाख ! कई बार तो मन हुआ कि बेचो और रुपए ले जाओ। और यह आदमी पीछे दे, न दे। लेकिन गुरु ने मना किया था।
लौटकर आया। गुरु ने पत्थर ले लिया। उसने कहा, बेचना नहीं है। सिर्फ तुझे यह बताने को पत्थर दिया था कि सत्य का तू आकांक्षी है, इतने से ही सत्य नहीं मिलता; पारखी भी है या नहीं ? नहीं है तो हम सत्य देंगे और तू दो पैसे दाम बताएगा। तू दो पैसे का भी न समझेगा। पारखी होकर आ । सत्य तो है और हम देने को भी तैयार हैं। लेकिन सिर्फ इतना तेरे कह देने से कि तू आकांक्षी हैं, काफी नहीं हल होता। क्योंकि मैं देखता हूं, अकड़ तेरी भारी है। पैर भी तूने झुककर छुए हैं। शरीर तो झुका, तू नहीं झुका । छू लिए हैं उपचार वश, छूने चाहिए इसलिए। और लोग भी छू रहे हैं इसलिए । झुकना ही तुझे नहीं आता, तो जिन हीरों की यहां चर्चा
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