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________________ सत्संग-सौरभ पगध्वनियां हैं। सत्य तुम्हारे तुमसे भी ज्यादा करीब है, क्योंकि सत्य तुम्हारा स्वाभाव है। एस धम्मो सनंतनो। लेकिन तुम अपने ऊहापोह में ऐसे उलझे हो कि जो निकटतम है, समीपतम है, वह भी सुनाई नहीं पड़ता। संवेदनशील बनो। सत्संग का पहला सूत्र है, संवेदनशील बनो। अगर तुम परमात्मा की हवाओं के लिए मुक्त नहीं, अगर परमात्मा की सूरज की किरणें तुम पर पड़ती हों लेकिन तुम अछूते रह जाते हो, तो तुम परमात्मा के लिए भी खुले नहीं हो। और जब परमात्मा किसी सदगुरु में तुम्हारे बीच खड़ा हो जाएगा, तब तुम हजार तरह की व्याख्याएं कर लोगे। तुम्हारी व्याख्याएं ही तुम्हारे और सदगुरु के बीच में दीवालें बन जाएंगी। तुम्हारे शब्द, तुम्हारी समझदारी ही तुम्हारी आंख पर पर्दा डाल देगी। और तुम वही समझ लोगे, जो तुम समझ सकते थे। सत्संग वहीं चूक जाता है। वह समझो, जो सदगुरु है। वह मत समझो, जो तुम समझ सकते हो। ____ अपनी समझ को थोड़ा किनारे रखो। अपनी समझ को थोड़ी बाद दो। अपनी समझ को कभी-कभी छोड़ भी आए घर। जहां जूते उतारते हो, वहीं उसे भी उतार आए। कभी-कभी बुद्धि को छोड़कर भी जीयो। हृदय से ही, कभी-कभी प्रेम से ही देखो; विचार से नहीं। कभी संवेदनशीलता में ऐसे डूब जाओ, कि भूल ही जाओ कौन हो तुम-स्त्री या पुरुष, गरीब या अमीर, काले या गोरे, बच्चे या बूढ़े, सुंदर या कुरूप, बुद्धिमान कि बुद्धिहीन। कभी प्रेम में ऐसी डुबकी लगाओ कि ये सब कोटियां भूल ही जाएं। तुम रहो, कोई कोटि तुम्हारे आसपास न हो। कोई लेबल न रह जाए, कोई विशेषण न हो। हिंदू नहीं, मुसलमान नहीं, ईसाई नहीं, जैन नहीं, बस तुम-खाली, निर्विकार, कोरे कागज की भांति। __ तत्क्षण तुम्हारे ऊपर वेद उतरने शुरू हो जाते हैं। तुम उपलब्ध हो गए। तुम खुल गए। उपनिषदों की वर्षा होनी शुरू हो जाती है। सदगुरु जो कहना चाहता है, या सदगुरु का अस्तित्व जो कह रहा है, उसे समझने के लिए तुम्हें अपने को जरा अपने से दूर रखना ही पड़ेगा। क्योंकि वह किसी और लोक की खबर लाया है। वह गीत लाया है किसी और लोक के। वह संपदाएं लाया है अपरिचित, अनजान, अज्ञेय की। तुम जरा अपनी परख और समझ को किनारे रखो। मिश्र में एक अदभुत फकीर हुआ, झुनून। एक युवक ने आकर उससे पूछा, मैं भी सत्संग का आकांक्षी हूं। मुझे भी चरणों में जगह दो। झुनून ने उसकी तरफ देखा-दिखाई पड़ी होगी कलछी-उसने कहा, तू एक काम कर। खीसे से एक पत्थर निकाला और कहा, जा बाजार में, सब्जी मंडी में चला जा, और दुकानदारों से पूछना कि इसके कितने दाम मिल सकते हैं। वह भागा गया। उसने जाकर सब्जियां बेचने वाले लोगों से पूछा। कई ने तो
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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