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________________ एस धम्मो सनंतनो धार मत देते रहना। अन्यथा खुद की ही गरदन काट लोगे। कोई और न कटेगा इससे, खुद ही कटोगे। लेकिन जिस युवती ने मुझे यह कहा, वह अपने को बुद्धिमान समझती है। सुशिक्षित है। लेकिन सुशिक्षित होने से कहीं कोई बुद्धिमान हुआ? अन्यथा दुनिया में इतने बुद्धिमान होते, जिसका हिसाब न रहता। सुशिक्षित लोग तो बहुत हैं। पढ़े-लिखे लोग तो बहुत हैं। लेकिन पढ़े-लिखे होने से, साक्षर होने से सुबुद्धि का कोई भी संबंध नहीं। निरक्षर होकर भी सुबुद्धि हो सकती है, साक्षर होकर भी न हो। __ अक्सर ऐसा ही होता है कि साक्षर अपनी साक्षरता में ही सुबुद्धि को खो देता है। समझ लेता है कि बस, विश्वविद्यालय की उपाधियों में सब ज्ञान मिल गया। इसलिए तो संसार में बुद्धों का होना कम होता चला गया है। क्योंकि ज्ञान के नाम पर मूढ़ता ने घर बना लिए हैं। ज्ञान के नाम पर मूढ़ता ने इतना इंतजाम कर लिया है, विश्वविद्यालयों की इतनी उपाधियां इकट्ठी कर ली हैं अपने चारों तरफ, कि बुद्धत्व के जन्म की संभावना न रही। बुद्धत्व के जन्म का पहला सूत्र है : अपने अज्ञान को समझना। .. ___ मूढ़ वही है, जो सोचता है कि ज्ञानी है। और अमूढ़ वही है, जिसने समझा कि मैं अज्ञानी हूं। अमूढ़ सत्संग को उपलब्ध हो सकेगा। मूढ़ दाल में कलछी की तरह पड़ा रहे जीवनभर, तो भी उसे कुछ स्वाद न लगेगा। ऐसे लोगों को मैं जानता हूं, जिनसे मेरा संबंध वर्षों का है, लेकिन वे कलछी की भांति ही मुझसे जुड़े रहे। उन्हें कुछ स्वाद नहीं लगा। उन पर दया आती है। उनके लिए आंसू बहते हैं, लेकिन कोई उपाय नहीं। कलछी कलछी है। जब तक वही राजी न हो बदलने को, तब तक कुछ भी किया नहीं जा सकता। _ 'यदि मूढ़ जीवनभर पंडित के साथ रहे तो भी वह धर्म को वैसे ही नहीं जान सकता है, जैसे कलछी दाल के रस को नहीं जानती है।' कलछी बड़ी कठोर है, सख्त है। उसकी सख्ती के कारण ही संवेदना-शून्य है। तुम कलछी की भांति मत रहना। सख्त मत रहना। थोड़े संवेदनशील बनो। अपने चारों तरफ एक पर्त को मत खड़ी करो। उस पर्त के कारण न तुम रो सकते हो, न तुम हंस सकते हो। उस पर्त के कारण तुम्हारा सब झूठा हो गया है, अप्रामाणिक हो गया है। सूरज उगता है, लेकिन तुम्हें दिखाई नहीं पड़ता। फूल खिलते हैं, लेकिन तुम्हारे प्राणों से उनका कोई संबंध नहीं जुड़ता। हवाएं आती हैं, लेकिन तुम्हें बिना छुए गुजर जाती हैं। परमात्मा हजार-हजार ढंग से तुम्हारे द्वार पर दस्तक देता है। तुम हजार-हजार ढंग से अपने को समझा लेते हो, कुछ और होगा, कोई राहगीर होगा, या कोई भिखमंगा आ गया होगा, या हवा का झोंका आया होगा। उसकी पगध्वनियां बहुत बार तुम्हारे करीब आती हैं। तुम्हारे हृदय की धड़कन से भी ज्यादा करीब उसकी 54
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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