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सत्संग-सौरभ
कहा जाए, उससे उलटा करती है।
अब यह मूढ़ता का लक्षण हुआ। लेकिन वह अकड़ी है। उसका खयाल है, उसके पास कुछ बेजोड़ व्यक्तित्व है। बगावती है, विद्रोही है।
अहंकार बड़ी तरकीबें खोजता है। बगावत के आभूषण खोजता है। विद्रोह के आवरणों में छिप जाता है। अच्छे-अच्छे नारे लिख लेता है अपने चारों तरफ। उनके बीच सुरक्षित हो जाता है। अब यह भी मूढ़ता की बात हुई कि जो भी कहा जाए, उसी को हां कहने में कठिनाई मालूम पड़ती है।
- जरूर न कहने की तैयारी रखो। बहुत कुछ है जिंदगी में, जिसको न कहना है। अगर न कहना नहीं जानते तो तुम्हारे हां कहने का कोई भी अर्थ नहीं, कोई मूल्य नहीं। तुम्हारी हां कचरा है। तुम्हारे न से ही बल आता है, शक्ति आती है। जरूर न कहने की तैयारी रखो, लेकिन न कहने की तैयारी का मतलब इतना ही है कि हां कहने की तैयारी में सहयोगी हो। नकार अपने आप में मूल्यवान नहीं है। जरूर घास-पात को काटो, लेकिन फूलों के बीज भी बोओ। जरूर व्यर्थ को जलाओ, लेकिन सार्थक को सम्हालो भी। कंकड़-पत्थर को छोड़ो, निश्चित छोड़ना ही है, लेकिन हीरों को मत फेंक देना। न कहो, लेकिन हर चीज के लिए न कहोगे? तब तो आत्मघात हो जाएगा। तुम्हारा इंकार बगावत न हुई, आत्महत्या हुई।
जरूर न कहो, पर तुम्हारी न तुम्हारे अत्यंत विवेक से निकले, विद्रोह से नहीं। न कहने के मजे से नहीं, न कहना है इसलिए नहीं, न कहने के लिए नहीं। हां की तलाश में बहुत न भी कहनी पड़ेंगी। हीरों की खोज में बहुत पत्थर छोड़ने पड़ेंगे। लेकिन खोज पर नजर रहे। ध्यान विधेय पर हो; नकार का उपयोग कर लेना है।
उपनिषद कहते हैं, नेति-नेति विधि है ब्रह्म को पाने की। न कहना...न कहना विधि है ब्रह्म को पाने की : यह भी नहीं, वह भी नहीं। लेकिन ध्यान रखना, खोजते चले जाना। यह तो न कहना तो सिर्फ उपाय है, ताकि व्यर्थ का इंकार हो जाए, सार्थक बच रहे, सार्थक में डुबकी लग जाए। . अब अगर न कहना ही जीवन की आदत हो जाए, यह जीवन की शैली बन जाए, कि तुम हां कहने में असमर्थ हो जाओ, पंगु हो जाओ, कि हां तुमसे निकल ही न सके, कि हां की गरदन तुम घोंट दो भीतर, तो फिर तुमने आत्महत्या कर ली। यह फिर मूढ़ता हो गई। फिर नहीं ने तुम्हें मारा। फिर नहीं तुम्हारी कब्र बन गई। फिर तुम नहीं का उपयोग न कर सके। नहीं ने ही तुम्हारा उपयोग कर लिया। ___ मत कहो इसे विद्रोह। मत कहो बगावत। बगावत बड़ी बात है। विद्रोह कीमती शब्द है। ऐसी क्षुद्रता के लिए उसका उपयोग मत करो। यह सिर्फ अहंकार है। और अहंकार मूढ़ता है। मैं तुम्हें न कहना सिखाता हूं, ताकि तुम हां कह सको किसी दिन। मैं चाहता हूं कि तुम्हारी न इतनी प्रगाढ़ हो जाए कि जब तुम हां कहो तो तुम्हारी हां की कोई सीमा न रहे। न जरूर कहो, ताकि हां में धार आ जाए। लेकिन न पर ही
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