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________________ बुद्धि, बुद्धिवाद और बुद्ध बीमारी है, तभी तक औषधि की जरूरत है । और जब बीमारी ही चली गई तो औषधि का क्या करोगे? और जब अंधेरा ही न रहा तो रोशनी को क्या करोगे ? सुबह तो दीया बुझा देते हो न ! जब सूरज उग आया तो दीए का क्या करोगे ? जब सूरज उग आया तो मशाल लेकर चलोगे तो लोग पागल समझेंगे। एक ऐसी घड़ी आती है आखिरी, जहां चैतन्य की भी जरूरत नहीं रह जाती। इतना विराट चैतन्य चारों तरफ फैला होता है कि अपने चैतन्य का क्या सवाल है ? उसको भी ढोना बोझ मालूम पड़ने लगता है। होने ही को है ऐ दिल तकमील मुहब्बत की एहसासे-मुहब्बत भी मिटता नजर आता है प्रेम पर, प्रेम की यात्रा में ऐसा पड़ाव आता है, जहां प्रेम का भाव भी विलीन हो जाता है। क्योंकि सभी भाव विपरीत पर निर्भर हैं। होने ही को है ऐ दिल तकमील मुहब्बत की अब प्रेम की पूर्णता करीब ही आती है । यह करीब ही आने लगी ऐ दिल, प्रेम की पूर्णता ! एहसासे -मुहब्बत भी मिटता नजर आता है अब तो प्रेम का भाव भी मिटता हुआ नजर आ रहा है । तो पूर्णता करीब आने लगी। इसे समझो। विपरीत के कारण आवश्यकता है। क्रोध है, इसलिए समझाते हैं, करुणा चाहिए । जब क्रोध ही न होगा तो करुणा भी क्या चाहिए ? इसका यह मतलब नहीं है कि तुम कठोर हो जाओगे। इसका मतलब इतना ही है कि तुम इतने करुणा से एक हो जाओगे कि तुम्हें पता ही न चलेगा कि करुणा है। करुणा का पता भी कठोर लोगों को चलता है। तुम रास्ते पर किसी को दान दे आते हो, तो तुम कहते फिरते हो कि दान दे आए। यह लोभी आदमी का लक्षण है। लोभ के कारण दान का पता चला। अगर लोभ बिलकुल मिट गया हो तो देने का पता कैसे चलेगा? दे दोर्गे ऐसे ही, जैसे श्वास बाहर आती है, भीतर जाती है । किसको पता चलता है ? हां, कभी-कभी पता चलता है श्वास का; श्वास की कोई बीमारी हो जाए तो पता चलता है। नहीं तो श्वास का कहीं पता चलता है ? चलती रहती है, आती-जाती रहती है । स्वास्थ्य का कोई पता नहीं चलता, बीमारी का ही पता चलता है। तुम्हें प्रेम का पता चलता है, क्योंकि तुम्हारे भीतर घृणा अभी भी मौजूद है। जब घृणा बिलकुल मिट जाएगी, तुम क्या किसी से कह सकोगे कि मैं तुम्हें प्रेम करता हूं? कैसे कहोगे ? तुम प्रेम रूप हो गए होओगे। कौन कहेगा, मैं प्रेम करता हूं? कौन अलग होकर कहेगा कि मैं प्रेम करता हूं ? प्रेम करने के लिए भी घृणा करने की क्षमता चाहिए। प्रेम करता हूं, ऐसा पता चलने के लिए घृणा शेष चाहिए । जब 45
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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