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________________ एस धम्मो सनंतनो भगवान का अर्थ ही है, जो असीम हो। और अंधों ने भगवान पर भी सीमाएं लगा दी हैं। उन्होंने विशालता के चारों तरफ भी दीवाल खड़ी कर दी। उन्होंने कहा, यह हमारी विशालता है, वह तुम्हारी विशालता है। ये अलग-अलग हैं। उन्होंने एक-दूसरे के सिर भी फोड़े, मंदिर तोड़े, मस्जिदें जलायीं। लेकिन सारी सीमाएं मूलतः बुद्धि की सीमाएं हैं। और जब तक भीतर बुद्धि विशाल न हो जाए, तब तक तुम बाहर मंदिर-मस्जिद खड़े करते ही रहोगे। उससे कोई भेद न पड़ेगा। समझ जरूरी है। छोटा सा द्वीप है समझ का, जिस पर थोड़ी रोशनी है। उसका उपयोग कर लो। उस रोशनी को हाथ में ले लो। उस रोशनी की मशाल बना लो। तो द्वीप के चारों तरफ घना अंधकार है, तुम मशाल लेकर चल पड़ो। तुम जहां रहोगे, वहां अंधकार न रहेगा। समझ सीमित घेरे में न रह जाए तो मशाल बन जाती है। फिर तुम जहां जाते हो, वहीं तुम्हारा मार्गदर्शन करती है। अगर सीमित घेरे में रह जाए तो बंधन बन जाती है। तो फिर तुम डरने लगते हो अंधेरे में जाने से। तुम ऐसे आदमी हो, जिसने घर में दीया जला रखा है; बाहर जाने से डरता है, क्योंकि बाहर अंधेरा है। मैं तुमसे कहता हूं, बाहर अंधेरा है, माना; और अंधेरे में जाने से डर है यह भी माना; दीया हाथ में क्यों नहीं उठा लेते? दीए को साथ बाहर क्यों नहीं ले जाते ? जहां जाओ, दीए को साथ ले जाओ। तुम जहां रहोगे, वहां अंधेरा न रहेगा। समझ की मशाल बनानी जरूरी है। समझ को ठोंककर कहीं गाड़ मत दो; हिंदू-मुसलमान की मत बनाओ, मंदिर-मस्जिद में सीमित मत करो; मुक्त रखो। मशाल बना लो। जहां जाओगे, वहां रोशनी बढ़ती जाएगी। इन अनंत विस्तार में तुम समझ की नाव बना लो। इसको तुम राह की खूटी मत बनाओ। उससे बंधो मत, नाव बना लो। यह तुम पर निर्भर है। जिस लकड़ी से खूटी बनती है, जिससे तुम बंधते हो, उसी लकड़ी से नाव भी बन जाती है। तीसरा प्रश्नः भगवान बुद्ध आत्मा को नहीं लेकिन चैतन्य को, अप्रमाद को तो मानते हैं। और चैतन्य शायद परम है, या क्या उसका भी निर्वाण होता है? क ठिन होगा समझना। चैतन्य का भी निर्वाण हो जाता है। क्योंकि चैतन्य की जरूरत तभी तक है, जब तक तुम्हारे भीतर अचैतन्य है; अचेतना है। जब तक घर में अंधेरा है, तभी तक रोशनी की जरूरत है। और जब तक भीतर 44
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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