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बुद्धि, बुद्धिवाद और बुद्ध आसमानों के पार और भी आसमान हैं। आसमानों के पार-और पार-और भी आसमान हैं। आसमानों का कोई अंत नहीं है।
इस अनंत आसमानों के विस्तार को बुद्ध ने शून्य कहा है। यह शून्य वही है, जिसको उपनिषद ब्रह्म कहते हैं। इन अनंत आसमानों के साथ अपने को एक कर लेने को बुद्ध ने निर्वाण कहा है। यह निर्वाण वही है, जिसको और बुद्ध पुरुषों ने मोक्ष कहा है।
बुद्धि बड़ी छोटी सी बात है। बुद्धि से ही अगर तुमने सारे जीवन को समझना चाहा, तो तुमने बड़ी संकीर्ण सीमाएं लगा दीं अस्तित्व पर। तुम्हारी संकीर्ण सीमाओं के कारण ही तुम अस्तित्व से वंचित रह जाओगे।
बुद्धि उपयोगी है, उसका उपयोग कर लो। उसका उपयोग कर लो उसके पार जाने के लिए। उसकी सीढ़ी बना लो। उस पर चढ़ जाओ। उससे छलांग लगाने का उपयोग कर लो।
दीवार से घिरा था हरम का कुसूर क्या
पैदा अगर हदूद में वुसअत न हो सकी मंदिर का क्या कुसूर? मस्जिद का क्या कुसूर? दीवाल से घिरी है।
दीवार से घिरा था हरम का कुसूर क्या काबा का क्या कुसूर ? काशी का क्या कुसूर? दीवाल से घिरी हैं।
पैदा अगर हदूद में वुसअत न हो सकी अगर विशालता पैदा न हो सकी तो कुसूर कुछ भी नहीं, क्योंकि दीवालें थीं।
तुम्हारी बुद्धि विचारों की दीवाल से घिरी है। उस दीवाल को हटाना ही पड़ेगा; तो वुसअत पैदा हो जाए; तो विशालता पैदा हो जाए।
तुमने कभी एक भी क्षण अनुभव किया, जब विचार नहीं होते, तुम होते हो? जब विचार नहीं होते, तुम भी नहीं होते। जब विचार नहीं होते, तब एक विराट आकाश होता है। तब बीच की कोई दीवाल नहीं होती जो बांटे, अलग करे। कोई विभाजन नहीं होता। तुम अविभाज्य होते हो। अस्तित्व के साथ एक होते हो। उसी को भक्तों ने भगवान कहा है।
वह भक्तों की भाषा है। बुद्ध को वह भाषा प्रिय नहीं। क्योंकि बुद्ध ने उस भाषा के बड़े दुष्परिणाम देखे। भक्तों के लिए ठीक रही होगी, लेकिन भक्तों के पीछे जो चलते हैं, उन्होंने कुछ और ही समझ लिया।
थोड़ा देखो, भगवान का अर्थ है, विशालता। इसलिए भक्त वह है, जिसने जीवन की विशालता जानी। जिसने ऐसा जीवन जाना, जिस पर कोई सीमा नहीं। लेकिन फिर हिंदू भक्त है, वह हिंदू भगवान की पूजा करता है। उसका भगवान भी सीमित है। फिर ईसाई है, वह ईसाई भगवान की पूजा करता है। उसका भगवान भी सीमित है।
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