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________________ एस धम्मो सनंतनो बातें कहीं हैं, अभी भी उनके लिए पूरा-पूरा समय नहीं आया। कुछ आया है; अभी भी पूरा नहीं आया। समझने की कोशिश करें। बुद्ध ने एक ऐसे धर्म को जन्म दिया, जिसमें ईश्वर की कोई जगह नहीं है। एक ऐसी प्रार्थना सिखाई, जिसमें परमात्मा का कोई स्थान नहीं। अड़चन है—आज भी अड़चन है। आज भी तुम बिना परमात्मा के प्रार्थना कैसे करोगे? आज भी तुम्हें कठिनाई होगी। प्रार्थना बिना परमात्मा के होगी कैसे? तुम वस्तु में आधार खोजते हो, बाहर सहारा खोजते हो। परमात्मा भी बाहर ही तुम कल्पित करते हो। तुम्हें प्रार्थना भी करनी हो...प्रार्थना तो भीतर की भावदशा है। उसके लिए भी बाहर कोई निमित्त चाहिए! बुद्ध ने सब निमित्त छुड़ा लिए। बुद्ध ने कहा, प्रार्थना पर्याप्त है, परमात्मा की कोई जरूरत नहीं। अभी भी देर है मनुष्य के इतने धार्मिक होने में, जहां प्रार्थना परमात्मा के बिना पर्याप्त होगी। इसका अर्थ हुआ कि मनुष्य परिपूर्ण रूप से अंतर्मुखी हो। यह परमात्मा की बात भी बाहर देखने की ही बात है। जब भी तुम परमात्मा शब्द का उपयोग करते हो, तब तुम्हारी आंख बाहर गई। यहां तुमने कहा परमात्मा, वहां मंदिर बने। यहां तुमने कहा परमात्मा, वहां प्रतिमा बनी। इधर तुम्हारे मन में परमात्मा का खयाल आया कि कहीं आकाश में तुम्हारी आंख उसे खोजने लगी। कहा परमात्मा, और परमात्मा एक व्यक्ति हो गया-स्रष्टा, पृथ्वी को, जगत को बनाने वाला हो गया। फिर तुम झुकते हो। तुम किसी के सामने झुकते हो। तुम्हारा झुकना शुद्ध नहीं। तुम मजबूरी में झुकते हो। झुकना तुम्हारा आनंद नहीं। तुम कारण से झुकते हो, अकारण नहीं। बुद्ध ने कहा, प्रार्थना पर्याप्त है। प्रतिमा की कोई जरूरत नहीं। झुकना इतना आनंदपूर्ण है कि किसी के सामने झुकने का बहाना भी क्यों खोजना? इसे थोड़ा समझो। कठिन है, बड़ी दूर की बात है। अभी भी युग आया हुआ नहीं मालूम होता। रोज किताबें बुद्ध पर लिखी जाती हैं। करीब-करीब सभी किताबें जो बुद्ध पर लिखी जाती हैं, वे यही परेशानी अनुभव करते हैं लेखक उनके, कि धर्म और बिना ईश्वर के? तो फिर नास्तिकता क्या है? बुद्ध ने एक ऐसा धर्म दिया, जिसमें नास्तिक होकर भी तुम धार्मिक हो सकते हो। आस्तिकता को शर्त न बनाया। बेशर्त धर्म दिया। आस्तिकता में तो सीमा बन जाती है कि केवल वे ही बुलाए जाएंगे, जो मानते हैं। बुद्ध ने कहा, मानने या न मानने का कोई सवाल नहीं है। जो झुकने को तैयार हैं, वे बुला ही लिए गए। __ और झुकने का कोई संबंध किसी के सामने झुकने से नहीं है। यह हमारी आदत गलत है। यह सोचने का ढंग गलत है। क्या तुम अकारण नहीं झुक सकते? क्या झुकना अपने आप में अपना अंत नहीं हो सकता? साधन न हो, साध्य हो? मार्ग न 28
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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