________________
बाल-लक्षण
'जो मूढ़ अपनी मूढ़ता को समझता है, वह इस कारण ही पंडित है।'
जिसने जान लिया कि मैं मूढ़ हूं, उसके पांडित्य का प्रारंभ हुआ। जिसने जाना कि मैं अज्ञानी हूं, ज्ञान की पहली किरण फूटी। जिसने समझा कि मैं अंधकार में हूं, प्रकाश की तरफ उसकी अभीप्सा की यात्रा शुरू हुई। जिसने जाना कि मैं बीमार हूं, वह औषधि की तलाश में निकल ही जाएगा। ___प्यास को पहचान लिया, सरोवर को खोजने से कैसे बचोगे? हां, खतरा तो तब है, जब तुम प्यास को प्यास ही नहीं जानते, फिर तो सरोवर का कोई सवाल ही नहीं। सरोवर शायद आंख के सामने भी हो तो भी चूक जाओगे।
मूढ़ों की खूबी है कि वे अपने को पंडित समझते हैं। हजारों लोगों के निकट, हजारों लोगों के जीवन में झांकने का मुझे मौका मिला। इनमें मैंने पंडितों से ज्यादा मूढ़ दूसरे व्यक्ति नहीं देखे। पंडित कभी-कभी मेरे पास आ जाते हैं—मैंने इंतजाम किए हैं कि वे न आ पाएं—फिर भी कभी रास्ता खोज लेते हैं। पंडित जब भी मेरे पास आ जाते हैं तो मुझे बड़ी हैरानी होती है कि उनका क्या करो! उनको कोई साथ नहीं दिया जा सकता। ___दो दिन पहले ही एक पंडित का आगमन हुआ। उन्होंने कहा, मैं आपके पास इसलिए आया हूं कि आपका कहने का ढंग मुझे बहुत पसंद है। मैंने उनसे कहा, मैं जो कहता हूं, उसकी बात करो। कहने के ढंग का क्या प्रयोजन! असत्य को भी ढंग से कहा जा सकता है। असत्य को कहना हो तो ढंग से ही कहना पड़ता है। कहने के ढंग से कोई बात सच नहीं हो जाती। कहने के ढंग की फिक्र छोड़ो। तुम तो मुझे यह कहो, जो मैं कहता हूं। तो उन्होंने कहा, जो आप कहते हैं, वह तो मैं भी कहता हूं। कहने के ढंग का ही फर्क है।
अब इस आदमी की कोई सहायता नहीं की जा सकती। यह आदमी सहायता की जरूरत में है, मगर इसको खयाल है कि यह जानता है।
वे कहने लगे, मैं खुद ही समझाता हूं लोगों को आत्म-ज्ञान। मैं खुद ही व्याख्यान देता हूं। और भारत में ही नहीं, भारत के बाहर भी हो आया हूं।
फिर मैंने पूछा कि फिर तुम यहां किसलिए आए हो? कि नहीं, आपके पास आया हूं कि ध्यान सीख लूं। ये पंडित की मुसीबतें हैं, तुमसे कह रहा हूं।
ध्यान का क्या करोगे? आत्म-ज्ञान जब तुम लोगों को ही समझाते हो तो तुम्हें तो हो ही गया होगा। अब ध्यान का क्या करना है?
तब उन्हें थोड़ी बेचैनी हुई।
ध्यान का क्या करना है? जब आत्म-ज्ञान तुम्हें हो गया तो बात ही खतम हो गई। अब औषधि की तलाश किसलिए कर रहे हो? बीमारी से तो छुटकारा हो चुका। तुम तो दूसरों को भी बीमारी से छुटकारे की राह बता रहे हो!
21