SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो तब उस आदमी के चेहरे पर परेशानियां आ गयीं। वह ध्यान तो समझना चाहता है, क्योंकि आत्म-ज्ञान तो हुआ नहीं। जल तो पाना चाहता है, लेकिन यह भी स्वीकार नहीं करने को तैयार है कि प्यासा है। क्योंकि वह अहंकार को चोट लगती है। तो मैंने कहा, तब आना जब तुम स्वीकार कर लो कि प्यास है। क्योंकि यह पानी उन्हीं के लिए है जिनको प्यास हो। तभी आना, जब समझ में आ जाए कि तुम्हें अभी समझ में नहीं आया है। अन्यथा मेरे पास आने का प्रयोजन क्या है? __पंडित को साथ देना, सहारा देना बड़ा मुश्किल है। वह अपनी सुरक्षा किए बैठा है। _ 'जो मूढ़ अपनी मूढ़ता को समझता है, वह इस कारण ही पंडित है। और जो मूढ़ अपने को पंडित समझता है, वही यथार्थ में मूढ़ है।' जानने वालों ने अपने को जानने वाला नहीं समझा है। जितना जाना, उतना ही पाया कि कितना कम जानते हैं। जितनी आंख खुली, उतना ही पाया कि सत्य इतना विराट है कि हम जान-जानकर भी उसे चुका कहां पाएंगे! अपनी प्यास बुझा ली, एक बात; इससे कोई पूरा सागर थोड़े ही पी गए हैं! अपनी प्यास तो एक चुल्लूभर पानी में बुझ जाती है। वह चुल्लूभर पानी सरोवर थोड़े ही है। सत्य सरोवर जैसा है, अनंत सरोवर जैसा है। हमारी प्यास तो थोड़े में बुझ जाती है। हमारी प्यास ही कितनी बड़ी है? हमारी प्यास हमसे बड़ी तो नहीं है। प्यास बुझ जाने का यह अर्थ नहीं है कि हमने सत्य को जान लिया। सत्य की झलक ही प्यास को बुझा देती है। सत्य का पास आना ही प्यास को बुझा देता है। लेकिन इससे हमने सत्य को जान लिया, ऐसा थोड़े ही! सुकरात ने कहा है, जब मैंने जाना तो पाया कि मैं कुछ भी नहीं जानता हूं। जब तक मैं सोचता था, मैं कुछ जानता हूं, तब तक मैंने कुछ भी न जाना था। यूनान में देल्फी का मंदिर है। और देल्फी के मंदिर की देवी घोषणाएं करती थी-कोई वर्ष में कुछ विशेष दिनों पर। लोग पूछते थे, देवी से उत्तर आते थे। किसी ने यह भी पूछ लिया भीड़ में कि इस समय यूनान में सबसे ज्यादा ज्ञानी पुरुष कौन है? तो देवी ने कहा कि सुकरात। __ लोग गए और उन्होंने सुकरात से कहा। सुकरात ने कहा, कहीं कुछ भूल हो गई है। अगर तुम कुछ वर्षों पहले ऐसी खबर लेकर आए होते तो मैंने भी स्वीकृति दी होती। लेकिन अब नहीं दे सकता। अब मैं थोड़ा-थोड़ा जानने लगा हूं। मैं तुमसे कहता हूं कि मुझसे बड़ा अज्ञानी कोई भी नहीं है। तुम जाओ; देवी को कहो कि सुधार कर ले। घोषणा में कहीं कुछ भूल हो गई है। वे गए वापस। उन्होंने देवी को कहा कि कुछ भूल हो गई है। क्योंकि सुकरात खुद इनकार करता है। तो हम किसकी मानें? तुम्हारी मानें या उसकी मानें? वह खुद ही कहता है, मैं कोई ज्ञानी नहीं; मैं अज्ञानी हूं। मुझसे बड़ा अज्ञानी कोई भी नहीं। 22
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy