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________________ एस धम्मो सनंतनो हर नफस है निशात से लबरेज हर श्वास सुख-चैन से भर गई है। हर नफस है निशात से लबरेज तर्क जिस दिन से इख्तियार में है जिस दिन से भोग की व्यर्थता दिखी, त्याग की सार्थकता समझ में आई; जिस दिन से त्याग की सार्थकता समझ में आई, उसी दिन से श्वास एक सुख-चैन से भर गई है। मुझे तो याद नहीं है कोई खुशी ऐसी शरीक जिसमें किसी तरह का मलाल न था जिंदगी तुम्हें जो खुशियां देती है, अगर गौर से देखोगे, तुम ऐसी कोई खुशी न पाओगे, जिसमें किसी तरह का दुख सम्मिलित न हो। मुझे तो याद नहीं है कोई खुशी ऐसी शरीक जिसमें किसी तरह का मलाल न था और ऐसी खुशी भी क्या खुशी, जिसमें दुख सम्मिलित हो! ऐसा अमृत क्या अमृत, जिसमें जहर सम्मिलित हो! ऐसी जिंदगी भी क्या जिंदगी, जिसमें मौत सम्मिलित हो! __ पर एक ऐसी खुशी है, जो बुद्ध पुरुषों ने जानी, जहां श्वास-श्वास एक परम आनंद से भर जाती है, एक निगूढ़ आनंद से भर जाती है। लेकिन वह तभी, जब त्याग का अर्थ समझ में आ जाए। भोगी है, वह इकट्ठा करने में लगा है। त्यागी वह है, जिसे यह समझ में आ गया कि अपने ही होना है; अपनी ही मालकियत खोजनी है। दूसरे की मालकियत की खोज भोग है। अपनी मालकियत की खोज त्याग है। 'पुत्र मेरे हैं, धन मेरा है, इस प्रकार मूढ़ चिंतारत होता है। परंतु मनुष्य जब अपना आप नहीं, तब पुत्र और धन अपने कैसे होंगे?' उस आदमी का साथ मत करना, जो मूढ़ है; उससे बचना। मूढ़ता छूत की बीमारी है। भाग खड़े होना मूढ़ से। अकेले होना बेहतर। बुद्ध कहते हैं, अकेले होना बेहतर। अकेले ही चल लेना। मूढ़ का संग-साथ मत खोजना; अन्यथा गर्दन में चट्टान की तरह पड़ जाती है मूढ़ता। अपनी ही मूढ़ता डुबाने को काफी है और दूसरे की मूढ़ता का संग-साथ मत कर लेना। ___ठीक उलटी घटना घटती है, जब तुम किसी ऐसे साथी को खोज लेते हो, जो मूढ़ नहीं है। उसका संग-साथ नाव जैसा हो जाता है। उसके सहारे तुम दूर तक पार हो सकते हो। 'जो मूढ़ अपनी मूढ़ता को समझता है, वह इस कारण ही पंडित है।' पंडित की बड़ी सीधी व्याख्या बुद्ध कर रहे हैं 20
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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