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________________ बाल-लक्षण जाना हो तो उनके साथ होना, जो धर्म की यात्रा पर कम से कम तुम्हारे जितने तो भीतर हों ही। अगर कोई आगे गया मिल जाए तो सौभाग्य! लेकिन अपने से ज्यादा मूढ़ व्यक्तियों का साथ मत करना। मूढ़ता बड़ी वजनी है, तुम्हें डुबा लेगी। तुम उसे उबारने के खयाल में मत पड़ना। तुम उसे उबार सकोगे तभी, जब तुम अपने केंद्र पर पहुंच गए; जब तुम्हारी यात्रा सफल हुई; जब तुम्हारे भीतर कोई संदेह न रहा। __ शुरू-शुरू में तो बड़े संदेह होते हैं, जो स्वाभाविक है। जो आदमी भी भीतर की तरफ जाना शुरू करता है, हजार संदेह पकड़ते हैं। क्योंकि सारा संसार बाहर जा रहा है। तुम अकेले निकलते हो एक पगडंडी पर। राजपथ से उतरते हो। हजार डर घेर लेते हैं। अंधेरा मार्ग! मील के कोई निशान नहीं। नक्शा कोई साथ नहीं। पहुंचोगे या भटकोगे? ___ राजपथ पर पहुंचो या न पहुंचो, नक्शा साफ है। मील के किनारे पत्थर के निशान लगे हैं। हर मील पर हिसाब है। कहीं पहुंचता नहीं यह रास्ता, लेकिन बिलकुल साफ-सुथरा है, कंटकाकीर्ण नहीं है। और फिर हजारों-करोड़ों की भीड़ है। उस भीड़ में भरोसा रहता है। इतने लोग जाते हैं तो ठीक ही जाते होंगे। इतने लोग भूल तो न करेंगे! यही तो तर्क हैं तुम्हारे। भीड़ का तर्क है। वह तर्क यह है कि इतने लोग भूल तो न करेंगे। इतने लोग नासमझ तो न होंगे। एक तुम्हीं समझदार हो? करोड़ों-करोड़ों जन, जो राजपथ पर चल रहे हैं और सदा से चल रहे हैं, जिनकी भीड़ कभी चुकती नहीं, एक गिरता है तो दूसरा आ जाता है और सम्मिलित हो जाता है, भीड़ बढ़ती ही चली जाती है, जरूर कहीं जाते होंगे, अन्यथा इतने लोगों को कौन धोखे में रखेगा? ___ अकेला आदमी जब चलना शुरू करता है तो पैर डगमगाते हैं। संदेह, शंकाओं का तूफान उठ आता है। आंधियां घेर लेती हैं अकेले आदमी को। वह जो भीड़ का संग-साथ था, वह जो भीड़ का आसरा था, सुरक्षा थी, सांत्वना थी, राहत थी, साया था, सब छूट जाता है। अकेले हैं। अकेले तुम्हारे भीतर जो-जो दबा रखा था तुमने, सब प्रकट होने लगता है। पत्ते हिलते हैं तो भय लगता है। हवा चलती है तो भय लगता है। भीड़ में भरोसा था। इतने लोग साथ थे, भय कैसा! तुमने देखा? रास्ता निर्जन हो तो डर लगता है। भीड़-भाड़ हो तो डर नहीं लगता। हालांकि लुटेरे सब भीड़-भाड़ में हैं। निर्जन में लुटेरा भी नहीं। रोशनी हो तो डर नहीं लगता, अंधेरे में डर लगता है। क्यों? अंधेरे में तुम एकदम अकेले हो जाते हो। कोई दूसरा हो भी तो दिखाई नहीं पड़ता। तुम बिलकुल अकेले हो जाते हो। ___ मैं एक घर में मेहमान था। उस घर में एक छोटा बच्चा था। वह बड़ा भयभीत था भूत-प्रेतों से। तो घर के लोग उसे मेरे पास ले आए। उन्होंने कहा, कुछ इसको समझाएं। इसको न मालूम कहां से यह भय पकड़ गया है। तो घर का जो पाखाना था, वह आंगन के पार था। वहां इसको अगर जाना पड़ता है तो किसी को साथ ले
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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