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________________ एस धम्मो सनंतनो यह तुम्हारी कथा है। यह तुम्हारे मन की कथा है। यही तुम्हारी कथा है, यही तुम्हारी व्यथा भी। मरते दम तक भी आदमी भीतर देखने से डरता है। सोचता है, थोड़ा समय और! थोड़ा और रस ले लूं। थोड़ा और दौड़ लूं। इतना दौड़कर भी तुम्हें समझ नहीं आती कि कहीं पहुंचे नहीं। इतने भटककर भी तुम्हें खयाल नहीं आता कि बाहर सिवाय भटकाव के कोई मंजिल नहीं है। ___ जिन्हें खयाल आ जाता है, मौत तक नहीं रुकते। जिन्हें खयाल आ जाता है, जिस क्षण खयाल आ जाता है, उसी क्षण उनके लिए मौत घट गई। और उसी दिन एक नए जीवन का आविर्भाव होता है, एक पुनर्जन्म होता है। वह पुनर्जन्म ही सदधर्म है। उस दिन से ही भीतर की यात्रा शुरू होती है। उस दिन से चेतना के विस्तार में जाना शुरू होता है। ___'विचरण करते हुए अपने से श्रेष्ठ या अपने समान कोई साथी न मिले तो दृढ़ता के साथ अकेला ही विचरण करे। मूढ़ का साथ अच्छा नहीं है।' 'विचरण करते हुए...।' जिन्होंने सदधर्म का सूत्र पकड़ा, जो अपने भीतर की यात्रा पर चले, उन्हें कुछ बातें याद रखनी जरूरी हैं। पहली : 'विचरण करते हुए अपने से श्रेष्ठ या अपने समान कोई साथी न मिले तो दृढ़ता के साथ अकेला ही विचरण करे। मूढ़ का साथ अच्छा नहीं है।' क्यों? जिन्हें भीतर जाना हो, उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति का साथ नहीं पकड़ना चाहिए, जो अभी बाहर जा रहा हो। क्योंकि उसके कारण तुम्हारे जीवन में द्वंद्व और बेचैनी और अड़चन आएगी। ऐसे किसी व्यक्ति का साथ नहीं पकड़ना चाहिए, जो अभी भी प्रायश्चित्त करने को तैयार नहीं, अभी भी पाप की योजना बना रहा है। एक और गुनाह कर लूं कि तोबा कर लूं जो अभी सोच रहा है काबा की तरफ दूर से सिजदा कर लूं या दहर का आखिरी नजारा कर लूं उसके साथ तुम्हारा होना खतरे से खाली नहीं। क्योंकि उसके साथ होने का एक ही मार्ग है, या तो वह तुम्हारे साथ भीतर जाए, या तुम उसके साथ बाहर जाओ। और बाहर जाने वाले लोग बड़े जिद्दी हैं। बाहर जाने वाले लोग बड़े हठी हैं। बाहर जाने वाले लोग चट्टानों की तरह कड़े हैं। और तुम अभी नए-नए भीतर की तरफ चले हो। तुम अभी नए-नए अंकुर हो, और बाहर जाने वाला कड़ी चट्टान है। यह संग-साथ ठीक नहीं। यह खतरनाक है। डर यही है कि तुम्हारा अंकुर टूट जाए, चट्टान न टूटे। डर यही है कि तुम तो उसे भीतर न ले जा पाओ, वही तुम्हें बाहर ले जाए। तो बुद्ध कहते हैं, संग ही करना हो तो सत्संग करना। अगर धर्म की यात्रा पर 12
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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