________________
बाल-लक्षण
भर्तृहरि ने आंख बंद कर ली। वे फिर ध्यान में डूब गए।
जीवन का सबसे गहरा सत्य क्या है? तुम्हारा चैतन्य। सारा खेल वहां है। सारे खेल की जड़ें वहां हैं। सारे संसार के सूत्र वहां हैं।
तो बुद्ध कहते हैं, 'जिसने सदधर्म को न जाना उन मूढ़ों के लिए संसार बहुत बड़ा है। भवसागर अपार है। पार करना असंभव है।'
बुद्ध कहते हैं, नावें मत खोजो। नावों की कोई जरूरत नहीं है। जागो! सदधर्म में जागो। भवसागर सिकुड़ जाता है। पैदल ही उतर जाते हैं।
तुम्हें अपना पता हो जाए तो तुम इतने बड़े हो कि संसार बिलकुल छोटा हो जाता है। तुम्हारी तुलना में ही संसार का बड़ा होना या छोटा होना है। तुम्हारी अपेक्षा में। तुम बड़े छोटे हो गए हो। तुम्हारे छोटे होने के कारण संसार बड़ा दिखाई पड़ता है। जागो, तो तुम पाओ कि तुम विराट हो। तुम पाओ कि तुम विशाल हो। तुम पाओ कि तुम अनंत और असीम हो। संसार छोटा हो जाता है।
जिसने अपने भीतर को जाना, बाहर का सब सिकुड़ जाता है। और जो बाहरबाहर ही भटका, भीतर सिकुड़ता जाता है। और यह जो बाहर की तरफ जीने वाला आदमी है, यह जिंदगी तो गंवाता ही है, मरने के आखिरी क्षण तक भी इसे होश नहीं आता। मौत भी इसे जगा नहीं पाती। मौत भी तुम्हें सावधान नहीं कर पाती। मौत भी तम्हें होश नहीं दे पाती। और क्या चाहते हो? जीवन में सोए रहते हो, समझ में आता है; लेकिन मौत का खयाल भी तुम्हें तिलमिलाता नहीं? मौत भी द्वार पर आ जाती है तो भी आदमी बाहर की ही दौड़ में लगा रहता है। सोचता ही रहता है।
काबा की तरफ दूर से सिजदा कर लूं .. या दहर का आखिरी नजारा कर लूं मरते वक्त भी, मरण-शय्या पर भी आदमी के मन में यही सवाल उठते रहते
काबा की तरफ दूर से सिजदा कर लूं
या दहर का आखिरी नजारा कर लूं मंदिर को प्रणाम कर लूं, या इतनी देर संसार को और एक बार देख लूं!
या दहर का आखिरी नजारा कर लूं कुछ देर की मेहमान है जाती दुनिया
एक और गुनाह कर लूं कि तोबा कर लूं जा रही है दुनिया। __कुछ देर की मेहमान है जाती दुनिया जरा और थोड़ा समय हाथ में है।
एक और गुनाह कर लूं कि तोबा कर लूं पश्चात्ताप में गंवाऊं यह समय कि एक पाप और कर लूं!
11