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________________ एस धम्मो सनंतनो जाना पड़ता है रात। वह बाहर खड़ा रहे तो ही यह अंदर रहता है, नहीं तो यह बाहर निकल आता है। ___ तो मैंने उसको कहा कि अगर तुझे अंधेरे से डर लगता है, तो दिन में तो डर नहीं लगता? उसने कहा, दिन में बिलकुल नहीं लगता। तो मैंने कहा, तू लालटेन लेकर चला जाया कर। । उसने कहा, क्षमा करिए! अंधेरे में तो किसी तरह मैं उन भूत-प्रेतों से बचकर निकल भी आता हूं। और लालटेन में तो वे मुझे देख ही लेंगे। __मुझे उसकी बात जंची। अंधेरे में तो किसी तरह धोखा-धड़ी देकर, यहां-वहां से भागकर वह निकल ही आता है। लालटेन में तो और मुसीबत हो जाएगी। खयाल करना, उजाले में ज्यादा डर हो सकता है, क्योंकि दूसरा भी तुम्हें देख रहा है। अंधेरे में क्या डर है ? न तुम दूसरे को देखते हो, न दूसरा तुम्हें देखता है। __उस भयभीत बच्चे का तर्क महत्वपूर्ण है। लेकिन अंधेरे में डर लगता है। डर का कारण यह नहीं है कि कोई तुम्हें नुकसान पहुंचा देगा। डर का कारण बुनियादी यही है कि तुम अकेले हो गए। जहां भी तुम अकेले हो जाते हो, वहां घबड़ाहट पकड़ने लगती है। तुम्हारे सब सोए भय उठने लगते हैं, जो दूसरों की मौजूदगी में दबे रहते हैं। दूसरों की मौजूदगी में आदमी अपनी दृढ़ता बनाए रखता है। एकांत में सब भय उभरने लगते हैं। तो भीड़ से हटकर चलना कठिन है। मन होगा कि किसी का साथ पकड़ लें। बुद्ध कहते हैं, साथ पकड़ना ही हो तो या तो अपने से श्रेष्ठ का पकड़ना जो तुमसे आगे गया हो, जो तुमसे ज्यादा भीतर गया हो; कि उसके साथ उसकी लहर पर सवार होकर तुम भी भीतर की यात्रा पर पहुंचने में सुगमता पाओ। अगर यह न हो, अगर कोई सदगुरु न मिले, आगे गया हुआ व्यक्ति न मिले, तो कम से कम ऐसे का साथ पकड़ना, जो कम से कम उतना तो जा ही रहा हो, जितना तुम गए हो। अगर आगे ले जाने में साथी न बने, तो कम से कम पीछे ले जाने का कारण न बने। और अगर यह भी न हो सके-क्योंकि यह भी बहुत मुश्किल है तो अकेले ही विचरना। मूढ़ का साथ अच्छा नहीं। और एक बात स्मरण रखना, अकेले ही तुम आए हो, अकेले ही तुम जाओगे। सब संग-साथ मन को समझाने की बातें हैं। इसलिए अकेले होने की कला तो सीखनी ही पड़ेगी। और यह भी खयाल रखने की बात है कि जितना आदमी अपने भीतर गया होगा, उसके साथ तुम उतना ही साथ भी पाओगे और अपने को अकेला भी पाओगे। भीड़ पैदा होती है बहिर्मुखी व्यक्तियों से। अंतर्मुखी व्यक्तियों से भीड़ पैदा नहीं होती। यह बड़ा चमत्कार है। अगर एक कमरे में दस अंतर्मुखी व्यक्ति बैठे हों, तो दस व्यक्ति नहीं बैठे हैं; 14
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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