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मंथन कर, मंथन कर
की भी बढ़ जाएगी। __ तुम्हें सफलता मिल गई, अब असफलता ज्यादा कष्ट देगी। स्वभावतः तुम जितने ऊपर चढ़ जाओगे, जब गिरोगे तो उतने ही नीचे गिरोगे। और जीवन में कोई भी चीज थिर नहीं रह सकती। चढ़ोगे तो गिरोगे। सफल होओगे तो हारोगे। हर जीत हार ले आती है; जैसे हर दिन अपनी रात ले आता है। वे प्रणय-बंधन में बंधे हैं। हर प्रशंसा निंदा ले आती है। ___और इससे विपरीत भी सही है। अगर दुख आता है तो तुम्हारे जीवन में सुख की मात्रा उतनी ही बढ़ा जाता है।
थोड़ा समझो; गरीब आदमी जब भोजन करता है तो ज्यादा सुख पाता है अमीर की बजाय। भिखारी को राह पर अगर भोजन मिल जाए तो वह जैसी तृप्ति अनुभव करता है, वैसी संपन्न आदमी कभी अनुभव नहीं करता। संपन्न के सामने थाली लगी रखी रहती है, उसे भूख ही नहीं है, तृप्ति कैसी! भूख तृप्ति लाती है। भूख की मात्रा से तृप्ति की मात्रा निर्भर होती है।
तो कभी-कभी गरीब आदमी रूखी-सूखी रोटी से वैसा सुख पाता है, जैसा संपन्न आदमी राजभोगों से भी नहीं पाता। तुमने कभी भिखारी को देखा? राह पर पड़ा वृक्ष के नीचे सो जाता है। रास्ता चल रहा है, दिन की दुपहरी है, वह मजे से सो रहा है, घुर्रा रहा है। संपन्न, सुविधा-संपन्न रात अपने बहुमूल्य से बहुमूल्य शयनकक्षों में भी करवटें बदलते रहते हैं। सब सुविधा है, कोई बाधा नहीं है, नींद नहीं आ रही। क्योंकि नींद आने के लिए श्रम जरूरी है। श्रम लाता है नींद। अब दिनभर विश्राम किया तो नींद कैसे आएगी? विश्राम से थोड़े ही नींद आती है! ___ जिंदगी के तर्क बड़े विरोधाभासी हैं। आदमी के तर्क और जिंदगी के तर्कों में यही फर्क है। आदमी का तर्क यह कहता है कि दिनभर विश्राम का अभ्यास किया तो रात में नींद और अच्छी तरह आनी चाहिए। दिनभर तकियों से लगे लेटे रहे, उठे-बैठे इतना भी न किया, नौकर-चाकरों ने किया, बिजली के यंत्रों ने किया; तो दिनभर जब इतना अभ्यास कर रहे हैं विश्राम का तो रात तो बड़ी गहन नींद आनी चाहिए। परंतु उनको रात नींद आएगी ही नहीं; जरूरत ही न रही।
जो आदमी गिट्टी तोड़ रहा है, राह के किनारे पत्थर फोड़ रहा है, खेत में कुदाली चला रहा है, पसीना-पसीना हुआ जा रहा है, वह रात गहरी नींद की तैयारी कर रहा है। तुम कहोगे, इसे तो नींद आनी ही नहीं चाहिए। दिनभर अभ्यास कर रहा है, इतना उपद्रव कर रहा है शरीर के साथ, यह उपद्रव, यह बेचैनी रात में भी फैल जाएगी, यह सो न सकेगा। लेकिन यह गहरी नींद सोएगा और तुम न सो सकोगे। ___आदमी के तर्क और जिंदगी के तर्कों में यही भेद है। जिंदगी विरोध से चलती है और अनुपात बराबर होता है। इसलिए अगर तुम हिसाब लगाओ मरने पर तो गरीब और अमीर बराबर सुख-दुख का अनुपात पाते हैं। भिखारी और सम्राट
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