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एस धम्मो सनंतनो
पास अपनी कोई ऊर्जा नहीं है— जोड़-तोड़ है, उधार है । आत्मा के पास अपनी ऊर्जा है— जोड़-तोड़ नहीं है, उधार नहीं है, अपनी ऊर्जा है। शरीर को भोजन न दो तो मरने लगेगा। भोजन देते चले जाओ तो जी लेगा, घसिट लेगा; उसके लिए कोई ईंधन चाहिए रोज-रोज ।
उपवास से करने वाला व्यक्ति पहले जानेगा भेद कि शरीर को भूख है, शरीर की तृप्ति है; आत्मा की भूख ही नहीं, तृप्ति का सवाल कैसा ?
ध्यान का प्रयोग करने वाला व्यक्ति जानेगा, नींद शरीर की है, आत्मा का जागरण है, जागरण उसका स्वभाव है, नींद उसने कभी जानी नहीं ।
अलग-अलग धर्म इस भेद को अलग-अलग ढंग से जानेंगे। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, कहां से वे जानते हैं । कहीं से भी यह बात समझ में आ जाए, कहीं से . भी हाथ इस सूत्र पर पड़ जाए, क्रांति घटित हो जाती है।
मंगलदायी है, शुभ है । अत्यंत गहन कृतज्ञता से, अत्यंत गहन धन्यवाद के भाव से, आभार से, चुपचाप आगे बढ़े जाना है।
तीसरा प्रश्न :
आप अक्सर कहते हैं कि जिस चीज से आदमी को सुख होता है, उससे दुख भी; जिससे लाभ होता है, उससे हानि भी; तो कृपया आप बताएं कि यहां सुख और दुख का, लाभ और हानि का अनुपात क्या है ? कहीं पचास-पचास प्रतिशत तो नहीं, जो एक-दूसरे को नकारकर आदमी के हाथ में शून्य का शून्य रहने देते हैं ?
सा ही है; पचास-पचास प्रतिशत ही है। तुम लाख उपाय करो कि सुख ही सुख मिल जाए, असंभव है। तुम लाख उपाय करो कि दुख ही दुख मिल जाए, असंभव है। क्योंकि हर दुख उतनी ही मात्रा का सुख अपने साथ ले आता है। समझो किसी ने तुम्हारी प्रशंसा की, सुख मिला। बस, उतने ही सुख के साथ तुम्हारे भीतर अहंकार की मात्रा बढ़ गई। अब यह अहंकार की मात्रा इतना ही दुख तुम्हें दिलवाएगी, आज नहीं कल। क्योंकि जरा सी बात अब ज्यादा चोट करेगी। इस आदमी ने प्रशंसा न की होती और कोई आदमी गाली दे गया होता तो चोट इतनी न पड़ती। इस आदमी ने तुम्हारा वहम बढ़ा दिया। इसने कहा कि तुम जैसे साधु पुरुष संसार में विरले हैं। अब कोई आकर असाधु कह गया तो चोट अब ज्यादा लगेगी; ऐसी पहले न लगती । जितनी मात्रा में प्रशंसा ने सुख दिया है, उतनी ही मात्रा चोट
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