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________________ बाल-लक्षण गुरुत्वाकर्षण है जमीन में। तुम शराब पीकर उलटे-सीधे डांवाडोल चलो, गिर पड़ो, घुटना फूट जाए, हड्डी टूट जाए, तो कुछ ऐसा नहीं है कि परमात्मा ने शराब पीने का दंड दिया। बुद्ध के लिए ये बातें बचकानी हैं । बुद्ध कहते हैं, परमात्मा कहां बैठा है किसी को शराब पीने के लिए दंड देने को ? शराबी खुद ही डगमगाया। शराब ही दंड दिया। शराब ही दंड बन गई। गुरुत्वाकर्षण का नियम — कि तुम अगर डांवाडोल हुए, उलटे-सीधे गिरे, हड्डी-पसली टूट जाएगी। सम्हलकर चलो। गुरुत्वाकर्षण का नियम काम कर रहा है, उससे विपरीत मत चलो। उसके साथ हो लो। उसके हाथ में हाथ डाल लो, फिर तुम्हारी हड्डियां न टूटेंगी। फिर तुम गिरोगे न । गुरुत्वाकर्षण का नियम ही तुम्हें सम्हाल लेगा । ऐसा समझो कि जो नियम के साथ चलते हैं, उनको नियम सम्हाल लेता है । और जो नियम के विपरीत जाते हैं, वे अपने ही हाथ से गिर पड़ते हैं। जीवन का कौन सा नियम शाश्वत है ? जीवन का कौन सा नियम सबसे गहरा है ? तुम्हारे भीतर जो चैतन्य है, सभी कुछ उस चैतन्य के प्रति सापेक्ष है। सभी कुछ उसी चैतन्य से निर्भर होता है। सभी कुछ तुम्हारी दृष्टि का खेल है। यह नियम सबसे ज्यादा गहरा है। `राह से तुम चलते हो, कंकड़ पड़ा दिखाई पड़ जाता है। सूरज की सुबह की रोशनी में ऐसे चमकता है, जैसे हीरा हो । दौड़कर तुम उठा लेते हो। कंकड़ ने नहीं दौड़ाया, हीरा भी नहीं दौड़ा सकता; तुम्हारी वासना फैली। तुम्हारी वासना ने धोखा खाया। तुम्हारी वासना रंगीन पत्थर पर टिक गई। तुम्हारे भीतर सुगबुगाहट उठी । तुम्हारे भीतर वासना में पल्लव आए, सपने जगे, कि हीरा ! लाखों-करोड़ों का क्षणभर में हिसाब हो गया। दौड़ पड़े। पता भी न चला, कब दौड़े। हीरे ने नहीं दौड़ाया। हीरा तो वहां है ही नहीं, दौड़ाएगा क्या ! पास पहुंचे, हाथ में उठाया, सूरज की रोशनी का जाल टूट गया । पाया कंकड़ है, वापस फेंक दिया। शिथिल अपने रास्ते पर चल पड़े। उदास हो गए। विषाद हुआ, हार हुई, अपेक्षा टूटी। कंकड़ ने दुख दिया ? कंकड़ बेचारा क्या दुख देगा! कंकड़ को तो पता ही न चला कि तुम क्यों दौड़े ? तुम क्यों पास आए ? तुम क्यों प्रफुल्लित दिखाई पड़े ? तुम क्यों अचानक उदास हुए ? कंकड़ को कुछ पता ही न चला। सब खेल तुम्हारा था। दौड़े वासना से भरे, ठिठके, झुके, उदास हुए, फिर अपनी राह पर चल पड़े। भर्तृहरि ने घर छोड़ा। देख लिया सब । खूब देखकर छोड़ा। बहुत कम लोग इतने पककर छोड़े संसार को, जैसा भर्तृहरि ने छोड़ा। अनूठा आदमी रहा होगा भर्तृहरि । खूब भोगा । ठीक-ठीक उपनिषद के सूत्र को पूरा कियाः तेन त्यक्तेन भुंजीथाः । खूब भोगा। एक-एक बूंद निचोड़ ली संसार की। लेकिन तब पाया कि. कुछ भी नहीं है; अपने ही सपने हैं, शून्य में भटकना I
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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