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________________ एस धम्मो सनंतनो हो। सोए हो तो भवसागर है, पार करना मुश्किल। ___ तुम्हारी तृष्णाएं ही डुबाती हैं, संसार नहीं। तुम्हारे तृष्णाओं के तूफान ही डुबाते हैं, संसार नहीं। तृष्णाएं गयीं, होश आया, संसार सिकुड़ा। ऐसी जलधार हो जाती है, जैसे गर्मी के दिनों में सूख गई नदी की रेखा। ऐसे ही उतर जाओ, नाव की भी जरूरत नहीं पड़ती। ऐसे ही पैदल पार कर जाओ, पंजा ही मुश्किल से डूबता है। और अगर जरा ठीक से खोजो, और भी अगर होश से भर जाओ, तो जलधार बिलकुल ही सूख जाती है। नदी की रेत ही रह जाती है। संसार का संसार होना तुम्हारी कामना में छिपा है। संसार तुम्हारा प्रक्षेपण है। इसलिए संसार को दोष मत देना; न संसार के ऊपर उत्तरदायित्व थोपना। स्मरण करना इस बात का 'जागने वाले को रात लंबी होती है।' रात वही है, लेकिन तुम जब सोए थे तो रात छोटी थी। तुम्हें पता ही न था, रात कब गुजर गई। तो तुम्हारे मनोभावों पर निर्भर है रात का लंबा या छोटा होना। 'थके हुए के लिए योजन लंबा होता है।' तुम्हारी थकान से कोस बड़े हो जाते हैं। निराशा से कोस बड़े हो जाते हैं। फिर आशा जग जाए, फिर कोस छोटे हो जाते हैं; फिर आशा का एक नया पल्लव फूट पड़े, फिर यात्रा छोटी हो जाती है। 'वैसे ही सदधर्म को न जानने वाले मूढ़ों के लिए संसार बड़ा होता है।' सदधर्म क्या है? उसे जानना क्या है? बुद्ध की धर्म की परिभाषा समझ लेनी चाहिए। हिंदू धर्म को बुद्ध धर्म नहीं कहते हैं; न यहूदी धर्म को बुद्ध धर्म कहते हैं। धर्मों को बुद्ध धर्म कहते ही नहीं। मजहब से बुद्ध के धर्म का कोई लेना-देना नहीं। धर्म से बुद्ध का अर्थ है : जीवन का शाश्वत नियम, जीवन का सनातन नियम। इससे हिंदू, मुसलमान, ईसाई का कुछ लेना-देना नहीं। इससे मजहबों के झगड़े का कोई संबंध नहीं है। यह तो जीवन की बुनियाद में जो नियम काम कर रहा है, एस धम्मो सनंतनो; वह जो शाश्वत नियम है, बुद्ध उसकी ही बात करते हैं। और जब बुद्ध कहते हैं : धर्म की शरण जाओ, तो वे यह नहीं कहते कि किसी धर्म की शरण जाओ। बुद्ध कहते हैं, धर्म को खोजो कि जीवन का शाश्वत नियम क्या है? उस नियम की शरण जाओ। उस नियम से विपरीत मत चलो, अन्यथा तुम दुख पाओगे। ऐसा नहीं है कि कोई परमात्मा कहीं बैठा है और तुम जब-जब भूल करते हो तब-तब तुम्हें दुख देता है; और जब-जब तुम पाप करते हो तब-तब तुम्हें दंड देता है। कहीं कोई परमात्मा नहीं है। बुद्ध के लिए संसार एक नियम है। अस्तित्व एक नियम है। तुम जब उससे विपरीत जाते हो, विपरीत जाने के कारण कष्ट पाते हो।
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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