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कल्याण मित्र की खोज
देश की परिस्थितियां बदलने में लगा रहता है।
वे हैं अमीर निजामे-जहां बनाते हैं
मैं हूं फकीर मिजाजे-जहां बदलता हूं __ और सदगुरु है वह, जो तुम्हारे भीतर का मिजाज-बाहर का निजाम नहीं, भीतर का मिजाज; बाहर की परिस्थिति नहीं, भीतर की मनःस्थिति बदलता है।
कल्याण मित्र वही है, जो तुम्हारे भीतर की मनःस्थिति को बदलने में सहयोगी हो जाता है। और यह तभी संभव है, जब वह तुमसे ऊपर हो, उत्तम पुरुष हो। यह तभी संभव है, जब वह तुमसे आगे गया हो। जो तुमसे आगे नहीं गया है, वह तुम्हें कहीं ले जा न सकेगा। आगे ले जाने की बातें भी करे तो तुम्हें नीचे ले जाएगा।
इसलिए सजग रहना; क्योंकि आगे ले जाने की बातें करने वाले बहुत लोग मिलेंगे। लेकिन ध्यान रखना कि आगे तुम जा रहे हो? चलना संग-साथ उनके, क्योंकि और कोई परीक्षा भी नहीं है, लेकिन कसौटी करते रहनाः शांत हो रहे हो पहले से? मौन हो रहे हो पहले से? जीवन में उत्सव की किरण आ रही है? अंधेरा थोड़ा कम मालूम पड़ता है पहले से? दीए की लौ थोड़ी थिर होती, स्थिर होती, मालूम होती है पहले से? प्रेम बढ़ रहा है? जीवन में थोड़ी गुनगुनाहट आ रही है? गा सकते हो? नाच सकते हो? अगर यह बढ़ती हो रही हो, उत्सव की बढ़ती हो रही हो, तो समझना कि आगे जा रहे हो।
अगर जीवन में उदासी बढ़ रही हो, विपन्नता आ रही हो, धीरे-धीरे जीवन एक अंधेरी रात की तरह मालूम पड़ रहा हो तो भाग खड़े होना। ___मैं बहुतों को वहां उलझे देखता हूं इसलिए कह रहा हूं। धर्म के नाम पर उदासी बढ़ाई जाती है।. परमात्मा अगर कुछ है तो उत्सव है। चारों तरफ देखो-फूलों में, वृक्षों में, आकाशों में। परमात्मा अगर कुछ है तो उत्सव है, सतत उत्सव है। महोत्सव है। एक क्षण को भी उत्सव ठहरता नहीं। यह नाच चलता ही रहता है। ये झरने बहते ही रहते हैं। ये फूल खिलते ही रहते हैं। जरा गौर से देखो, कहीं तुम्हें उंदासी दिखाई पड़ती है? कहीं तुम्हें उदासीनता दिखाई पड़ती है? कहीं तुम्हें इस जीवन के विराट में, कहीं जरा सा भी कोना ऐसा मालूम पड़ता है, जहां तुम्हारे तथाकथित विरक्त और त्यागियों से कोई तालमेल बैठ जाए? ___कहीं चूक हो रही है। जिसे वे ऊपर जाना समझ रहे हैं, वह ऊपर जाना नहीं है, वे पत्थर होकर और नीचे उतरे जा रहे हैं। और कठोर होते जा रहे हैं, संवेदनशीलता बढ़ी नहीं, घट गई है। सौंदर्य का बोध बढ़ा नहीं, नष्ट हो गया है। प्रेम फैला नहीं, बिलकुल सिकुड़ गया है। सिकुड़ा हुआ प्रेम, मरी हुई संवेदनाएं, थकी-थकी सांसें, उदास पथरीलापन!
तो तुम जिनको सोच रहे हो गुरु हैं, वे गुरु नहीं हैं। वे तम्हें और अंधेरी घाटियों में ले जा रहे हैं। वे तुम्हें कब्र में ही उतारकर रहेंगे। मंदिर की तरफ यह यात्रा नहीं है।
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