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________________ एस धम्मो सनंतनो 'धर्म रस का पान करने वाला प्रसन्नचित्त से सुखपूर्वक सोता है।' यह कसौटी है। 'धर्म रस का पान करने वाला प्रसन्नचित्त से सुखपूर्वक सोता है।' धर्म रस-उस छोटे से शब्द में सब कह दिया। धर्म रस है। रसो वै सः। परमात्मा रस है। तन भीगा मन भीगा कण-कण तृण-तृण भीगा . देहरी द्वारा आंगन उपवन त्रिभुवन भीगा रस है परमात्मा। भिगा दे, डुबा दे, रो-रोआं पुलकित हो जाए। ठीक कहा बुद्ध ने, 'धर्म रस का पान करने वाला प्रसन्नचित्त से...।' उसके जीवन में तुम प्रफुल्लता पाओगे; प्रसन्नचित्तता पाओगे। उसकी गुनगुनाहट. तुम्हें उसके पास जाते ही सुनाई पड़ेगी। तुम उसके पास किन्हीं अनूठी ऊर्जाओं का नृत्य देखोगे। तुम उसके आभा-मंडल में अंधेरा नहीं पाओगे, आकाश का विस्तार, सूर्य की किरणें पाओगे। इससे ही पहचान करना। रस जहां बंटता हो, जहां रस की मधुशाला खुली हो, वहीं। जहां मधु न बंटता हो, जहां रस न बंटता हो, वहां धर्म के नाम पर कुछ धोखा हो रहा होगा। वह मरे, मुर्दा लोगों की जमात होगी। वह हारे हुए, थके हुए लोगों की जमात होगी। कहते हैं, हारे को हरिनाम। हार गए, अब कुछ न बचा, हरिनाम करने लगे। जिंदगी में पराजित हो गए, कहीं पहुंच न पाए, लड़खड़ा गए। अब क्या करें? राम नाम चदरिया ओढ़ ली। बैठ गए उदास होकर। ___परमात्मा उदास नहीं है। तुमने गौर किया? परमात्मा त्यागी ही नहीं है, महाभोगी है। नहीं तो कभी का सृष्टि-क्रम बंद हो जाए। बुद्ध परमात्मा की बात नहीं करते, जरूरत नहीं है। बुद्ध के लिए धर्म रस ही परमात्मा का प्रतीक है। 'धर्म रस का पान करने वाला प्रसन्नचित्त से सुखपूर्वक सोता है।' उसकी तंद्रा स्वप्न-रहित है। उसका जागरण विचार-शून्य है। रस ही रस है। तन भीगा मन भीगा कण-कण तृण-तृण भीगा देहरी द्वारा आंगन उपवन त्रिभुवन भीगा सब भीगा है रस से। 'पंडित सदा आर्योपदिष्ट धर्म में रमण करता है।' आर्य शब्द को समझना जरूरी है। आर्य शब्द का अर्थ होता है : श्रेष्ठ। इससे आर्यों से कोई संबंध नहीं है; जाति सूचक नहीं है। बुद्ध ने कहा है, आर्य वही है, जो ऊपर की तरफ जा रहा है। ऊर्ध्वगामी ऊर्जा आर्य है। 'पंडित सदा आर्योपदिष्ट धर्म में रमण करता है।' . ऊपर जाने वालों की जो जमात है, समझदार उसके साथ हो लेता है। आर्यों के साथ हो लेता है। उत्तम पुरुषों के साथ हो लेता है। उसी में रमण करता है। 228
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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