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कल्याण मित्र की खोज
धीरे-धीरे इन्हीं झूठों के सहारे तुम अपनी एक प्रतिमा निर्मित करते हो। वह प्रतिमा बुनियादी रूप से गलत है। इसलिए जब तुम्हारी कोई निंदा करता है, उस प्रतिमा के विपरीत पड़ती है निंदा, प्रतिमा खंडित होती है; उससे बेचैनी होती है।
लेकिन बुद्ध पुरुष कहते हैं, उस बेचैनी को सह लेना; उस कष्ट को सह लेना; उस अशांति को झेल लेना। वह अशांति, वह कष्ट, वह बेचैनी उपयोगी है। इस प्रतिमा को गिर ही जाने देना, इसे एक बार खंडित हो ही जाने देना, ताकि तथ्य साफ हो सके।
और ध्यान रखना, सत्य तकं वही पहुंचता है, जो पहले तथ्य तक पहुंच जाए। अगर तथ्यों से ही तुम अपने को झुठला रहे हो, तो परम सत्य तक तुम कभी भी न पहुंच पाओगे।
_ 'निधियों को बतलाने वाले के समान अपने दोष दिखलाने वाला मिल जाए तो उस वाक्ताडन करने वाले मेधावी पुरुष की संगति करनी चाहिए।'
बुद्ध कहते हैं, मेधावी पुरुष; मजाक में कह रहे हैं। बड़ा गहरा व्यंग किया है। वे कह रहे हैं, उस महापुरुष का सत्संग करना चाहिए। उस प्रतिभाशाली का सत्संग करना चाहिए। उसे प्रतिभाशाली कह रहे हैं वे मजाक में, क्योंकि तुम्हारे दोष तो वह देख लेता है, अपने नहीं देख पाता, बड़ा प्रतिभाशाली है! उसकी आंखें दुनियाभर की भूल-चूक खोज लेती हैं, सिर्फ अपनी भूल-चूक नहीं खोज पातीं। तुम उसका लाभ ले लेना। अपनी कुशलता का लाभ वह खुद नहीं ले पा रहा है।
अगर इतनी ही खोज उसने अपने दोषों की की होती तो जीवन रोशनियों से भर गया होता। अंधेरे कभी के मिट गए होते उसके। फूल खिल गए होते उसकी जिंदगी में। लेकिन उस प्रतिभा का उपयोग वह अपने लिए नहीं कर पाया है। तुम कर लेना, तुम मत चूक जाना। तुम उसकी प्रतिभा का पूरा-पूरा फायदा ले लेना।
मैंने सुना है, चीन में एक बहुत बड़ा चित्रकार हुआ। वह अपने आलोचक को, अपने बड़े से बड़े आलोचक को, जब भी वह चित्र बनाता था, तो उसे पहले बुलाकर दिखा लेता था; तभी किसी और को दिखाता था। वह आलोचक भी कोई साधारण आलोचक न था। वह भूल-चूक खोज ही लेता था। चित्रकार उसे धन्यवाद देता, फिर ठीक करने में लग जाता। कभी-कभी ऐसा भी हुआ कि वर्षों लग जाते। लेकिन जब तक आलोचक तृप्त न हो जाता, तब तक वह चित्रकार चित्र को बाहर न जाने देता।
उसके चित्र आज भी महिमापूर्ण हैं। उसके चित्र ऐसे हैं कि उनमें भूल खोजनी कठिन है। उसने खुद ही वह मौका न छोड़ा। लेकिन धीरे-धीरे आलोचक को यह खयाल आया कि मैं अपनी जिंदगी व्यर्थ ही गंवा रहा हूं। इस आदमी के चित्रों की आलोचना कर-करके मैं क्या पा रहा हूं? इतनी मेहनत से मैं खुद ही चित्रकार हो गया होता। लेकिन तब तक बड़ी देर हो चुकी थी। प्रतिभा का उपयोग कर लेना। आलोचक के पास गहरी प्रतिभा है। प्रतिभा है
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