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________________ एस धम्मो सनंतनो फल है और अगर फल कडुवा निकल गया तो वृक्ष नीम का हो गया। अगर फल जहरीला निकल गया तो स्रोत जहर का हो गया। ___मां का अहंकार दांव पर लगा है बेटे में। बाप का अहंकार दांव पर लगा है बेटे में। तुम जरा मां और पिताओं की बातें सुनो। अगर इन सबकी बातें सच हैं तो इस दुनिया में इतने मेधावी लोग हों कि सारी पृथ्वी मेधा से भर जाए। हर एक मां-बाप यही सोच रहे हैं कि उन्होंने हीरे को जन्म दे दिया। फिर कहां ये हीरे खो जाते हैं? फिर इन हीरों का कोई पता नहीं चलता। ये हीरे और हीरों को जन्म देने लगते हैं। इनके हीरे होने का कुछ पता नहीं चलता। जिंदगी कूड़े-करकट से भरती चली जाती है। ध्यान रखना, तुम्हारी मां ने तुम्हें एक वहम दे दिया होगा कि तुम बड़े सुंदर हो। तुम्हारे पिता ने तुम्हें वहम दे दिया होगा कि तुम बड़े बुद्धिमान हो। बाप धक्के देता रहता है कि प्रथम आओ परीक्षा में। बाप का अहंकार दांव पर लगा है। तुम्हारा ही नहीं है सवाल, बच्चे ही परीक्षा नहीं दे रहे हैं, मां-बाप परीक्षा...मां-बाप की परीक्षा हुई जा रही है। जब तुम घर आते हो और असफल होकर आते हो तो मां-बाप दुखी हो जाते हैं तुमसे भी ज्यादा। तुमने उनकी प्रतिमा खंडित कर दी। तुम जब कुछ दुष्कर्म करते हो, कुछ बुरा काम करते हो, तो मां-बाप इसलिए दुखी नहीं होते कि तुम ने बुरा काम किया; दुख का कारण अहंकार है। अगर तुम्हारा दुष्कर्म छिपा रह जाए तो कोई हर्जा नहीं। मां-बाप भी चेष्टा करते हैं कि तुम्हारा दुष्कर्म पता न चल जाए। छिप जाए, तो ठीक। पता चलने से कष्ट होता है, अहंकार को चोट लगती है-मेरा बेटा! __मुल्ला नसरुद्दीन का बेटा बड़ी बेहूदी गालियां देता है और बड़ी लज्जत से। वह बाप से ही सीखा है। बाप भी बड़े कुशल हैं गालियां देने में। बेटा उनसे भी आगे निकल गया। अक्सर बेटे बाप से आगे निकल जाते हैं। बहुत बार मैंने नसरुद्दीन को कहा कि यह बेटा तुम्हें झंझट में डालेगा। फिर उसके स्कूल जाने का वक्त आ गया तो मैंने कहा, अब क्या करोगे? उसने कहा, तरकीब खोज ली है। उसने लड़के के कोट के कालर पर लिख दिया ः इस लड़के के विचार अपने हैं: परिवार वालों से उनका कोई संबंध नहीं। ऐसे कहीं बच सकोगे? बेटे की गालियां बाप की गालियों का प्रमाण हो जाएंगी। बेटे के सत्कर्म बाप के सत्कर्मों का प्रमाण हो जाएंगे। जो सत्कर्म बाप ने खुद नहीं किए, वे भी वह चाहता है, बेटा करे। बाप बेटों से बड़ी अपेक्षाएं रखते हैं। जो खुद पूरी नहीं कर पाए, वे सभी महत्वाकांक्षाएं रखते हैं। ये ही तुम्हें तुम्हारा पहला अहंकार देते हैं। फिर इस अहंकार को लेकर तुम जिंदगीभर जीते हो। फिर तुम इकट्ठे करते रहते हो। जहां से भी प्रशंसा मिल जाती है, जो भी तुम्हारी पीठ ठोंक देता है, उसे तुम इकट्ठा कर लेते हो। और जो भी तुम्हारी निंदा करता है, वह दुश्मन है, वह मित्र नहीं, वह शत्रु है। 212
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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