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________________ कल्याण मित्र की खोज ऐसे समझो कि गड्ढा खोदते हो तुम, हीरे- रे-जवाहरात की खदान पड़ी है, लेकिन पीछे मिट्टी-पत्थर की पर्त है, उसे अलग कर दो तो खदान मिल जाए । जलस्रोत खोजते हो तुम, गड्ढा खोदते हो, कुआं खोदते हो, बीस फीट, तीस फीट, चालीस, पचास फीट। कचरा, कूड़ा, पत्थर, मिट्टी सब निकाल डालते हो, शुद्ध जल की धार मिल जाती है। जिन फावड़ों ने मिट्टी खोदकर निकाली, वे दुश्मन नहीं हैं, वे मित्र हैं। जिन फावड़ों ने तुम्हारे भीतर से कूड़ा-करकट निकालकर बाहर ले आए, वे तुम्हारे दुश्मन नहीं हैं, मित्र हैं। साधारण आदमी निंदा से भयभीत होता है। क्या है निंदा का भय ? निंदा का भय यही है कि तुम जिसे छिपाते हो, वह उसे प्रगट कर देती है। तुम किसी तरह बामुश्किल उसे छिपा पाते हो, वह उघाड़ देती है । निंदा तुम्हें दुश्मन मालूम पड़ती है, क्योंकि तुम जो कर रहे हो, उससे विपरीत कर देती है। लेकिन अगर गौर से देखोगे तो तुम जो कर रहे हो, वही तुम्हारी दुश्मनी है। क्योंकि जिन भूलों को छिपा लिया, उनसे तुम पार न हो सकोगे। जिन रोगों को तुमने बताया नहीं, चिकित्सक को बताया नहीं, जिन रोगों को तुमने एक्सरे के सामने न किया, प्रगट न होने दिया, उन्हीं रोगों में तुम दबे -दबे मर जाओगे । रोग को छिपाना मत। रोग का निदान चाहिए । रोग को प्रगट करना होगा। रोग की औषधि खोजनी है। रोग से छुटकारा पाना है, छिपाना नहीं है। तो दुश्मन तुम हो, जो तुमने भूलें छिपाई हैं; निंदक नहीं । निंदक दुश्मन मालूम पड़ता है, क्योंकि वह तुम्हारी भूलें उघाड़ता है। लेकिन अब तुम ऐसा समझो कि तुमने ही अपनी दुश्मनी की थी भूलें छिपाकर । निंदक उससे उलटा कर रहा है। निंदक तुम्हारा मित्र है; तुम दुश्मन थे । लेकिन बहुत बार जीवन में हम पहचान नहीं पाते, कौन मित्र है, कौन शत्रु है । हम यही नहीं समझ पाते कि हम अपने मित्र हैं या शत्रु हैं। वहीं पहली भूल हो जाती है। तुमने अपनी एक प्रतिमा बना रखी है, जो झूठ है । वह प्रतिमा तुमने उन लोगों के हाथ से बनवा ली है, जिन्होंने तुम्हारी प्रशंसा की थी । तुम छोटे थे, तुम्हारी मां ने कहा, बड़े सुंदर हो। तुम्हारी मां का इसमें न्यस्त स्वार्थ है। सभी मां अपने बेटे को सुंदर कहती हैं। क्योंकि बेटे के सुंदर होने में ही मां के सुंदर होने का प्रमाण है, सौंदर्य का प्रमाण है। अगर बेटा कुरूप है तो मां कुरूप हो गई। कोई मां अपने बेटे को कुरूप नहीं कह सकती। कोई बेटा अपनी मां को कुरूप नहीं कह सकता। यह षड्यंत्र पारस्परिक है। क्योंकि बेटा अगर मां को कुरूप कहे, तो खुद कैसे सुंदर हो पाएगा? जब स्रोत ही कुरूप हो गया जहां से मैं आता हूं, तो मैं कैसे सुंदर हो पाऊंगा ? तो हर बेटा अपनी मां को सुंदर कहता है, हर मां अपने बेटे को सुंदर कहती है। हर मां अपने बेटे को लाल बताती है, हीरे-जवाहरात बताती है । कारण है; बेटा 211
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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