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________________ एस धम्मो सनंतनो दोषों को देखने की। नासमझ है, अपने लिए नहीं उपयोग कर पा रहा है। लेकिन तुम नासमझी मत करना। 'निधियों को बतलाने वाले के समान... ' सम्मान देना उसे। निधियां ही बतला रहा है। क्योंकि जहां उसने तुम्हारा एक झूठ बतलाया, वहीं झूठ के नीचे छिपा हुआ तुम्हारा सत्य भी है। अगर झूठ से तुम मुक्त हो गए, सत्य प्रगट हो जाएगा। झूठ ने सत्य के झरने को चट्टान की तरह दबाया है। उसने अगर तुम्हारी हिंसा बतलाई, तुम्हारा क्रोध बतलाया, तुम्हारी चोरी-बेईमानी बतलाई, तो उनके ठीक नीचे उनसे विपरीत छिपा है। जहां तुमने चोरी छिपा रखी है, उसी के नीचे तुम्हारा अचौर्य छिपा है। जहां तुमने अपनी कामवासना छिपा रखी है, उसी के नीचे, उसी चट्टान के नीचे तुम्हारे ब्रह्मचर्य, की संभावना छिपी है। जहां तुम्हारा क्रोध है, उसी के नीचे तुम्हारी करुणा के स्रोत बह रहे हैं। ठीक कहते हैं बुद्ध, ‘निधियों को बतलाने वाले के समान... ।' चट्टान हटा लेने की बात है; वह तुम कर लेना । बताने का काम उसने कर दिया, हटाने का काम तुम कर लेना। लेकिन आधा काम तो उसने पूरा कर ही दिया । निदान हो गया, डायग्नोसिस हो गई, बीमारी पकड़ ली गई। अब औषधि की तलाश बहुत बड़ी बात नहीं है । वह तो कोई साधारण सा केमिस्ट भी कर देगा । विशेषज्ञ की जरूरत तो होती है निदान के लिए । चिकित्सक की जरूरत तो होती है निदान के लिए। बीमारी ठीक से पकड़ ली गई, हल हो ही गई। हां, बीमारी ठीक से पकड़ में न आए तो हल होना मुश्किल है। तुम लाख इलाज करते चले जाओ, तुम्हारे इलाज नई बीमारियां पैदा कर देंगे। पुरानी बीमारी अपनी जगह सुरक्षित रहेगी, नई हजार बीमारियां पैदा हो जाएंगी। ऐसे ही तो तुम्हारी जिंदगी उलझ गई है। तुम निदान होने ही नहीं देते। बीमार खुद ही अपनी बीमारी का निदान नहीं होने दे रहा है। और मुफ्त चिकित्सक मौजूद हैं। उन मेधावी पुरुषों की मेधा का उपयोग कर लेना । कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे उपयोग करने के पहले वे खुद ही अपने उपयोग में लग जाएं और तुम्हारी चिंता छोड़ दें। नहीं, आंगन-कुटी छवा लेना। उन्हें अपने पास ही बसा लेना । 'क्योंकि वैसी संगति से कल्याण ही होता है, कभी अकल्याण नहीं होता।' और ध्यान रखना, कभी ऐसा मत मान लेना कि तुम पूरे हो गए हो ; वह भ्रांति है। कोई कभी पूरा नहीं होता । जीवन सतत गति है, जीवन यात्रा है। यात्रा ही मंजिल है । इसलिए याद रखना, जो भी तुम हो गए हो, बहुत कुछ होने को सदा बाकी है। क्यों साज के परदे में मस्तूर हो लय तेरी गुंचा है अगर गुल हो गुल है तो गुलिस्तां हो अगर अभी कली की तरह है तू तो फूल बन; अगर फूल की तरह है तो पूरे 214
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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