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________________ जागरण और आत्मक्रांति ग्राहक थे, कभी मेहमान आ गए थे। मैंने सोचा, फिर कभी...फिर कभी...फिर कभी...। मगर अभी मुझे पता चला कि आप अब संसार ही छोड़ रहे हैं तो मैं भागा आ गया हूं। बुद्ध ने कहा, फिर भी तुमने जल्दी की है। कुछ हैं, जो मैं छोड़ ही चुकुंगा, तब आएंगे। फिर भी देर-अबेर, तुम आ गए-तीस साल बाद सही। मगर कुछ हैं, जब मैं जा चुका होऊंगा, तब आएंगे। अब बुद्ध को हजारों साल तक लोग याद करेंगे। अब उस याद से कुछ भी बहुत होता नहीं। मन की इस वृत्ति को त्यागो, छोड़ो। समझो और छोड़ो। वर्तमान में जीना सीखो। जहां हो, वहां होना सीखो। यह सवाल मेरा ही नहीं है, अगर वृक्ष के पास बैठे हो तो वृक्ष के पास ही रहो; फिर मत भागो दूर-दूर। संसार बड़ा है, विस्तार बड़ा है, मत भागो दूर-दूर। इस छोटे से पौधे के पास ही हो जाओ। थोड़ी देर इसके पास ही रहो। जब हो तो पास ही रहो। जो करो, उस कृत्य में पूरे मौजूद हो जाओ। भोजन करो तो भोजन ही करो और कुछ न करो। स्नान करो तो स्नान ही करो और कुछ न करो। और तुम अचानक चकित हो जाओगे, यह स्नान भी प्रार्थना बन गया। स्नान भी पूजा हो गई। भोजन भी भगवान को लगाया भोग हो गया। कबीर ने कहा है, उठू बैलूं सो परिक्रमा। · · तो उठता-बैठता हूं, वह भी परिक्रमा हो गई परमात्मा की। यह है ही; क्योंकि कहीं भी उठो, कहीं भी बैठो, परिक्रमा तो उसी की है। और कोई है ही नहीं, तो परिक्रमा उसी की है। जहां बैठे हो, उसी का मंदिर है। चीजें बड़ी सरल हो जाएं अगर हम वर्तमान में जीना सीख जाएं। मगर हम कठिन बना लेते हैं। इश्क है सहल मगर हम हैं वो दुश्वार-पसंद कारे-आसां को भी दुश्वार बना लेते हैं जो बात बड़ी सरल है, उसको भी कठिन बना लेते हैं। मेरे पास हो, अंब मेरे पास होने से ज्यादा सरल और क्या हो सकता है? अब उसको भी कठिन बनाए दे रहे हो। दूर जाना हो, दूर चले जाओ; पर तब वहीं होना। तो वहीं ध्यान के फूल लग जाएंगे। यहां हो तो यहीं रहो; तो यहां ध्यान के फूल लग जाएंगे। ध्यान के फूल वहीं लग जाते हैं, जहां तुम्हारा संबंध वर्तमान से जुड़ जाता है। परमात्मा के होने का ढंग वर्तमान है; मन के होने का ढंग भविष्य है। इसलिए मन और परमात्मा का कभी मिलन नहीं हो पाता। वे समानांतर पटरियों की तरह हैं : साथ ही साथ दौड़ते रहते हैं, लेकिन मिलते कहीं भी नहीं। समानांतर रेखाएं हैं आत्मा की और मन की। आत्मा है वर्तमान में, मन है भविष्य में; दोनों साथ-साथ दौड़ते रहते हैं। 201
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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