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________________ एस धम्मो सनंतनो रेल की पटरी देखी? साथ ही साथ हजारों मील तक दौड़ती रहती है, लेकिन मिलना कहीं नहीं होता। अगर तुम अपने से मिलना चाहते हो तो मन की यह आदत जाने दो। अगर तुम मुझसे मिलना चाहते हो तो भी मन की यह आदत जाने दो। क्योंकि मुझसे मिलने का और कोई अर्थ नहीं है, वह तुमसे ही मिलने का एक नाम है। आखिरी प्रश्न: हमारे गांव में हम आपके जो संन्यासी हैं, वे एक साथ ध्यान में बैठते हैं। कभी-कभी ध्यान में ऐसा प्रतीत होता है कि आप वहां मौजूद हैं और हमें भीतर ही भीतर खींचे ले रहे हैं। और यह किसी एक मित्र का नहीं, प्रायः सभी का अनुभव है। यह क्या है? क्या आप वहां सचमुच आते हैं? अभी जो प्रश्न हमने पूरा किया, उसका यह दूसरा पहलू है। तुम मेरे पास रहकर भी दूर हो सकते हो, अगर मन बीच में आ जाए। तुम दूर होकर भी पास हो सकते हो, अगर मन बीच से हट जाए। अगर तुमने सच में ही ध्यान किया, अगर तुम तल्लीन हुए तो समय और स्थान की दूरियां मिट जाती हैं। समय और स्थान की दूरी शरीर जानता है, मन जानता है; आत्मा नहीं जानती।। __तुम्हारा शरीर वहां दूर होगा बलसार में-बलसार के मित्रों का प्रश्न है लेकिन जैसे ही तुमने ध्यान किया, जैसे ही मन शांत हुआ, मन की तरंगें हटीं, तुम मुक्त हुए, बलसार से मुक्त हुए। अब तुम कहीं आबद्ध न रहे, बंधे न रहे। पक्षी आकाश में उड़ गया—उसी खुले आकाश में, जहां मैं हूं, तुम भी वहीं हो गए। जो मेरे लिए सहज अवस्था है चौबीस घंटे, उसे भी तुम कभी क्षणभर को साध ले सकते हो; तो तुम्हारी भी उसी अवस्था में छलांग लग जाएगी। ' ध्यान का अर्थ क्या है? ध्यान का अर्थ है : क्षणभर के लिए समाधि में उतर जाना। समाधि का अर्थ क्या है ? समाधि का अर्थ है : ध्यान का सतत हो जाना। __ तो जो मेरी सदा की अवस्था है, चौबीस घंटे जहां मैं हूं, अगर तुम ध्यान में एक क्षण को भी हो गए तो मिलन हो गया। एक क्षण को तुम वहां न रहे, जहां हो; वहां हो गए, जहां मैं हूं। ___ और यह जो प्रश्न उठा है...यह प्रश्न उठता है, जब तुम वापस मन में लौट आते हो; तो मन प्रश्न उठाता है, यह कैसे हो सकता है ? तुम तो बलसार में हो, तुम तो यहां आंख बंद किए थे। नहीं, यह ठीक नहीं हो सकता। कहीं कुछ भूल-चूक हो गई होगी। शायद मन ने कोई कल्पना कर ली होगी। 202
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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