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एस धम्मो सनंतनो
मेरे पास रहकर बहुत दूर हो गए। इससे मेरा कुछ लेना-देना नहीं है। इससे तुम्हारे मन की ही मूर्छा का संबंध है।
बहुत बार मैं लोगों को अपने से दूर भी भेज देता हूं। सिर्फ इसीलिए, जब मैं देखता हूं, अब उनका मन बहुत धूल जमा रहा है। अब वे सिर्फ लगते हैं कि मेरे पास हैं और पास नहीं, उनको मैं दूर भेज देता हूं। वे बड़े पीड़ित होते हैं। उनको लगता है, मैं उनको हटा रहा हूं, भगा रहा हूं, छोड़ रहा हूं।
नहीं, छोड़ नहीं रहा हूं, न हटा रहा हूं। उन्हें दूर भेजना जरूरी है, ताकि उन्हें फिर मेरी याद आए। और दूर जाकर उन्हें याद आनी शुरू हो जाती है।
अभी चार दिन पहले सैनफ्रांसिस्को के एक संन्यासी अमिताभ को बड़ी जाने की इच्छा थी। सालभर से आने की इच्छा थी। वहां सब अपना कारोबार समाप्त करके सदा के लिए यहां मेरे पास रहने को आ गए। दो-तीन महीने में ही धूल जम गई। अब दो-तीन महीने से वे निरंतर वहां जाने का सोच रहे हैं। डरे थे कि कहीं मैं मना न कर दूं। मुझसे पूछने आए। मैंने कहा, बिलकुल मजे से चले जाओ। मैं खुद ही सोच रहा था कि अब समय हो गया।
वे थोड़े चौंके। कहा, क्या कहते हैं आप?
खुद ही सोच रहा था कि अब भेजना है। अब तुम जाओ। और आने की जल्दी मत करना।
वे कहने लगे, आपको पता कैसे चला? क्योंकि यह मैं भी सोच रहा था कि अब थोड़ा लंबा वहां रहूंगा। लेकिन आप सब खराब किए दे रहे हैं। आपके मुंह से यह सुनते ही कि आने की जल्दी मत करना, मेरे भीतर अभी जल्दी हो गई। मैं तीन सप्ताह में वापस आ जाऊंगा।
मैंने कहा, इतनी जल्दी क्या है? और तुम्हें वहां सदा टिकना हो तो तुम वहां सदा टिक जाना।
मुझे डर है कि वह तीन सप्ताह भी टिके! जाते ही वहां सैनफ्रांसिस्को में पूना की याद आने लगेगी। पना में है तो सैनफ्रांसिस्को की याद आती है।
मन की इस व्यवस्था को थोड़ा समझो और मन को यह खेल और मत खेलने दो। अन्यथा बहुत बार...सदा ही ऐसा हुआ है। बुद्ध के पास जो लोग थे, वंचित रह गए। और फिर अब हजारों साल से याद कर रहे हैं। अब रोते हैं। अब आंसू बहाते हैं, अब मंदिर बनाते हैं, पूजा करते हैं। और यह आदमी मौजूद था कभी, तब ऐसी भी घड़ियां आयीं कि बुद्ध किसी गांव से गुजरे हैं और तुम अपनी दुकान पर बैठे थे और काम बहुत था और तुम बुद्ध को देखने भी न गए।
ऐसा हुआ। बुद्ध जब मरने लगे तो एक आदमी भागा हुआ आया। उसने कहा कि तीस साल से मैं सोचता था, जाना है...जाना है...। आप मेरे गांव से कोई दस बार निकले, लेकिन कभी शादी थी घर में, कभी पत्नी बीमार थी, कभी दुकान पर
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