________________
जागरण और आत्मक्रांति तरंग न उठती हो, ऐसी तुम्हारी आंख होगी, जब कोई विचार, विश्वास तुम्हारे भीतर न होगा। उस निस्तरंग आंख में सत्य की झलक बनती है।
धारणा की कोई जरूरत ही नहीं है। जब सत्य सामने खड़ा हो, सीधे-सीधे देखने की जब सुविधा हो, आमना-सामना जब हो सकता हो, तो तुम धारणा के लिए क्यों परेशान हो? धारणाएं देखने नहीं देती हैं। दिखाने में सहायक तो कभी नहीं होती हैं, देखने नहीं देतीं।
जैसे ही तुमने धारणा बनाई कि तुमने एक पर्दा डाल दिया; फिर तुम वही देखोगे, जो तुम्हारी धारणा दिखला सकती है। तुम वह न देखोगे, जो है। तुम वही देखोगे, जो तुम्हारी धारणा में है। तुम अपनी धारणा को जगह-जगह देख लोगे और धारणा मजबूत करते जाओगे। और जो तुम्हारी धारणा के प्रतिकूल पड़ता है, वह तुम देखोगे ही नहीं; उसके प्रति तुम अंधे और बहरे हो जाओगे।
तब तुम अपने भीतर बंद हो गए। तुम एक कारागृह में घिर गए। इस कारागृह को तोड़ने की जरूरत है। माना कि इससे सांत्वना मिलती है। क्योंकि बिना कुछ किए, बिना खोजे, बिना खोज का श्रम उठाए, बिना कहीं गए, घर बैठे-बैठे तुम ज्ञानी हो जाते हो। काश, ज्ञान इतना मुफ्त होता! काश, ज्ञान इतना सस्ता होता! __ज्ञान आत्सक्रांति है। आग से गुजरना होता है, तभी सोना निखरता है; तभी तुम भी निखरोगे।
और बड़ी से बड़ी जो आग है, वह है : बिना धारणा के खड़ा हो जाना। क्योंकि तब यह सारा शून्य आकाश तुम्हें घेर लेता है। कहीं कोई सहारा नहीं बचता। कहीं पैर रखने को जमीन नहीं बचती।
कहां से आए हो, पता नहीं। कहां जा रहे हो, पता नहीं। कौन हो, पता नहीं। इतनी गहन असहाय अवस्था में कुछ भी पता नहीं; क्यों हूं, किसलिए हूं, कौन हूं, कुछ भी पता नहीं-घबड़ाहट पैदा होती है, बेचैनी उठ आती है। रो-रोआं कंप जाता है। . __ और चारों तरफ फैला हुआ महाशून्य है—अंतहीन! इस शून्य में फिर हम बड़े छोटे मालूम पड़ते हैं, ना-कुछ मालूम पड़ते हैं—एक तिनका भी नहीं। और यह भयंकर आंधियां शून्य की! और यह भयंकर तूफान! और यह जीवन और मरण का इतना बड़ा विराट खेल! और हमें कुछ भी पता नहीं। और हम एक छोटे से तिनके हैं-तिनके भी नहीं। ___ बड़ी घबड़ाहट होती है। मन होता है, जल्दी कोई सहारा खोज लें। स्वीकार कर लें कि परमात्मा ने संसार बनाया-राहत आ जाती है। तो परमात्मा है! उसी ने हमें बनाया और उसने मनुष्य को अपनी ही प्रतिमा में बनाया मजा आ गया! कि हम कोई छोटे-मोटे नहीं हैं। कोई तिनके नहीं हैं, परमात्मा ने बनाया है। परमात्मा की छाप हमारे ऊपर है। परमात्मा हमारा स्रष्टा है।
193