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________________ एस धम्मो सनंतनो तो हमने परमात्मा को मानकर अपने पैर के नीचे जमीन खड़ी कर ली; अब कोई डर नहीं है। और उसने बनाया है तो वह फिक्र भी रखेगा। और उसने बनाया है तो मंजिल पर भी पहुंचाएगा। और उसने हमें बनाया है अपनी ही प्रतिमा में तो हम कोई साधारण छोटे-मोटे आदमी नहीं रह गए, परमात्मा की प्रतिमा हो गए। अहं ब्रह्मास्मि—मैं ब्रह्म हो गया। . ___ अब बड़ा सुख मिला। अब कोई कठिनाई न रही। अब यह सब जो इतना विराट है, इसके प्रति एक पर्दा पड़ गया और आदमी ने अपने को एक शिखर पर बैठा लिया-धारणा के शिखर पर। इसीलिए तो धारणा वाले लोग, विश्वास करने वाले लोग बड़े भयभीत रहते हैं। अगर उनकी धारणा जरा उनके पैर के नीचे से खींचो तो मरने-मारने को उतारू हो जाते हैं। क्योंकि तुम समझ ही नहीं रहे, तुम क्या कर रहे हो। तुम उनका पूरा घर गिराए दे रहे हो। ईश्वर-विश्वासी को कहो कि ईश्वर नहीं है, मरने-मारने को उतारू हो जाता है। इतनी क्या बुरी बात कह दी थी? ऐसी क्या अड़चन आ गई थी? तुम चकित भी होते हो कि क्यों इतना यह परेशान हो गया? __ तुमने इसके पैर के नीचे की जमीन खींच ली। यह कोई धारणा ही न थी, इसका घर था। यह कोई धारणा ही न थी, यह इसका आशियां था। यह कोई धारणा ही न थी, यह इसका सहारा था। तुमने इसे फिर अंधेरे में डाल दिया। तुमने इसे फिर अराजकता में पहुंचा दिया। तुमने इसके संदेह फिर जगा दिए। ___ मैंने सुना है कि एक आदमी यात्रा कर रहा था। वह ट्रेन में प्रवेश किया-छोटा सा दुबला-पतला आदमी! डरा-डरा, सहमा-सहमा! उसने एक आदमी से, जो अखबार पढ़ रहा था, पूछा कि यह गाड़ी लंदन ही जा रही है? वह आदमी अपने अखबार में लीन था। उसने कहा कि हां, लंदन जा रही है। मगर उसने इस ढंग से कहा कि उस दुबले-पतले कमजोर से आदमी को, डरे से आदमी को भरोसा न आया। वह एक घड़ीभर तो बैठा रहा, फिर उसने कहा, भाई जान! सच में ही यह गाड़ी लंदन जा रही है? वह अखबार पढ़ने वाला अपने अखबार में लगा है, उसे गुस्सा आया। उसने कहा, कह दिया एक बार कि लंदन जा रही है; देखते नहीं कि लिखा ही है? डब्बे पर लिखा है, डब्बे के भीतर लिखा है कि लंदन जा रही है। शांत होकर बैठ जाओ। पढ़े-लिखे नहीं हो? ___ तो वह बेचारा सिकुड़कर अपनी कुर्सी पर शांत होकर बैठ गया। दूसरे स्टेशन पर एक आदमी आया अंदर और उसने उस दुबले-पतले डरे-डरे आदमी से पूछा कि क्या यह गाड़ी लंदन जा रही है? उसने कहा, हे भगवान! फिर तुमने संदेह पैदा कर दिया। किसी तरह अपने को सम्हालकर बैठे थे कि लंदन ही जा रही है; अब यह फिर एक आदमी आ गया, जो पूछता है कि जा रही है लंदन? भीतर तो मन यही 194
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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