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________________ एस धम्मो सनंतनो की जरूरत नहीं है। प्रार्थना के बाद प्रार्थना का फल नहीं है, प्रार्थना में है; प्रार्थना में अंतर्निहित है। इसलिए तो भक्ति-सूत्र में नारद ने कहा, भक्ति अपना फल है; साधन नहीं, साध्य है। लेकिन तुम अगर लोभ से भरे रहे तो तुम प्रार्थना भी कर लोगे, वर्षा हो भी जाएगी और तुम अछूते रह जाओगे । परमात्मा द्वार पर भी आ जाएगा, तुम्हारी नजर उसकी जेब पर ही लगी रहेगी। तुम परमात्मा के हृदय में प्रवेश न पा सकोगे। किरन आफताब की दस्ते दर पे तपिश छिड़क के चली गई - सूरज की किरण तुम्हारे द्वार पर भी आएगी, अपनी ऊष्मा, अपनी गर्मी छिड़क कर चली भी जाएगी। किरन आफताब की दस्ते दर पे तपिश छिड़क के चली गई मगर एक जईए मनफइल जो बुझा रहा सो बुझा रहा लेकिन तुम बुझे के बुझे रहे । तुम अपने अहंकार में, अपने संकोच में, अपने लोभ में दबे रहे, सो दबे रहे । किरण आई भी और गई भी। सारी बदलाहट लोभ से निर्वाण के रास्ते पर है। उससे बड़ा और कोई इंकलाब नहीं, कोई और बड़ी क्रांति नहीं, महाक्रांति है। बस, एक ही क्रांति है इस संसार में लोभ से निर्वाण के रास्ते पर बदलाहट । पूछो मत जीवन में कि किसलिए है? जीयो । और प्रत्येक क्षण को अपनी मंजिल हो जाने दो; फिर किरणों का राज खुल जाएगा; फिर फूलों की गंध तुम्हारी तरफ उठने लगेगी; फिर तुम जीवन को एक और ही नई आंख से देखोगे। सब कुछ था, लेकिन तुम्हारी लोभ की नजर के कारण तुम अंधे थे। सब कुछ मिला ही हुआ था। कुछ कमी न थी । कभी भी कमी न थी। अभी भी कमी नहीं है। कभी भी कमी न होगी। सिर्फ तुम अपनी लोभ की आंख के कारण अंधे थे। कभी राह मैंने बदली तो जमीं का रक्स बदला कभी सांस ली ठहरकर तो ठहर गया जमाना तुम्हारे ऊपर सब निर्भर है। तुम्हारे देखने के ढंग पर सब निर्भर है। संसार का अर्थ है, लोभ की दृष्टि से देखा गया परमात्मा; तब संसार दिखाई पड़ता है। परमात्मा का अर्थ है, निर्वाण की दृष्टि से देखा गया संसार; तब परमात्मा दिखाई पड़ता है। वही है । संसार और परमात्मा दो नहीं हैं । झेन फकीरों में वचन है कि संसार और निर्वाण एक हैं। बड़ी उलटी बात मालूम पड़ती है, लेकिन बात जरा भी उलटी नहीं है । सत्य तो एक ही है, देखने के ढंग दो हैं। देखने के ढंग पर सब निर्भर है। ऐसा हुआ कि मैं अपने एक मित्र के साथ एक बगीचे की बेंच पर बैठा था । विश्वविद्यालय में जब पढ़ता था तब की बात है । सांझ का वक्त था, धुंधलका उतर आया था। और दूर से एक लड़की आती हुई मालूम पड़ी। उस मित्र ने उस लड़की 174
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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