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________________ लाभ-पथ नहीं, निर्वाण-पथ की तरफ कुछ वासना-भरी बातें कहीं। जैसे-जैसे लड़की करीब आने लगी, वह थोड़ा बेचैन हुआ। मैंने पूछा कि मामला क्या है ? तुम थोड़े लड़खड़ा गए! उसने कहा कि थोड़ा रुकें; मुझे डर है कि कहीं यह मेरी बहन न हो। और जब वह और करीब आई और बिजली के खंभे के नीचे आ गई—वह उसकी बहन ही थी। ___मैंने पूछा, अब क्या हुआ? यह लड़की वही है; जरा धुंधलके में थी, वासना जगी। पहचान न पाए, वासना जगी। अब पास आ गई, अब थोड़ा खोजो अपने भीतर, कहीं वासना है? वह कहने लगा, सिवाय पश्चात्ताप के और कुछ भी नहीं। दुखी हूं कि ऐसी बात मैंने कही, कि ऐसे शब्द मेरे मुंह से निकले। मैंने उससे कहा कि जरा खयाल रखना, सारी बात दृष्टि की है। अब यह भी हो सकता है कि और पास आकर पता चले, तुम्हारी बहन नहीं; फिर नजर बदल जाएगी; फिर नजर बदल जाएगी, फिर वासना जगह कर लेगी। सत्य तो एक ही है। जब तुम लोभ की नजर से देखते हो, संसार बन जाता है। जब तुम निर्वाण की नजर से देखते हो, परमात्मा बन जाता है। __ कभी राह मैंने बदली तो जमीं का रक्स बदला कभी सांस ली ठहरकर तो ठहर गया जमाना यह जो तुम्हें इतनी चहल-पहल दुनिया में दिखाई पड़ती है, यह जो इतना उपद्रव दिखाई पड़ता है, यह भी इसलिए दिखाई पड़ता है कि तुम भीतर उपद्रव में हो। अगर वहां सब शांत हो जाए, तुम अचानक पाओगे कि सब तरफ शांति ही शांति है। जो भीतर शांत हुआ, उसने सब तरफ शांति पाई। जो भीतर चुप हुआ, उसने सब तरफ चुप्पी पाई। जो भीतर आनंदित हुआ, उसने सब तरफ आनंद पाया। . यह दुख की रात तुम्हारे भीतर का ही फैलाव है। यह नर्क तुमने ही बोया है; तुम्हारी ही दृष्टि का फल है। इसको बदलना नहीं है, अपनी दृष्टि को बदल लेना है। दृष्टि के बदलते ही सृष्टि बदल जाती है। रूहे-मुतरिब में नए राग ने अंगड़ाई ली साज महरूम था जिस धुन पे वह धुन जाग पड़ी पर्दा-ए-साज से तूफाने-सदा फूट पड़ा रक्स की ताल में इक आलमे-नौ झूम उठा जैसे वीणा रखी है, अनछुयी, और तुमने अंगुलियों से इशारा किया-सोया हुआ राग फूट पड़ा; ऐसे ही तुम्हारी दृष्टि के बदलते ही कुछ सोया हुआ राग फूट पड़ता है। तुम्हारी सांस के ठहरते ही, तुम्हारे थोड़े शांत होते ही, तुम्हारे थोड़े ध्यानस्थ होते ही, सारा जगत एक दूसरा ही रहस्य हो जाता है। रूहे-मुतरिब में नए राग ने अंगड़ाई ली साज महरूम था जिस धुन पे वह धुन जाग पड़ी 175
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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