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________________ एस धम्मो सनंतनो इन्फिआल अपनी खुदी का है खुदा जिसको कहें वह अपने अहंकार का ही पश्चात्ताप है, जिसको तुम खुदा कहते हो, वह अपनी ही खुदी का पश्चात्ताप है। बहुत अहंकार को मजबूत कर लिया है, अब कोई चाहिए, जिसके सामने समर्पण करें। और असली परमात्मा तब प्रगट होता है, जब तुम्हारी लोभ की यह दृष्टि, तुम्हारा हिसाब-किताब गिर जाता है। 'लाभ का रास्ता दूसरा है और निर्वाण का रास्ता दूसरा है।' . निर्वाण का क्या है रास्ता फिर? पक्षी गीत गा रहे हैं। पूछो, लाभ क्या है? किसलिए गा रहे हैं? न अखबारों में कोई खबर छपेगी, न भारत-रत्न और पद्म-विभूषण के कोई खिताब मिलेंगे, न कोई विश्वविद्यालय उपाधियां देंगे, न बैंकों में हिसाब बढ़ेगा। पूछो, पक्षी गीत क्यों गा रहे हैं? पूछो, फूल खिले क्यों हैं? कोई उत्तर न आएगा। ___ फूल खिले हैं, खिलने के लिए। पक्षी गीत गा रहे हैं, गीत गाने के लिए। गीत गाना इतना अपरिसीम आनंद है, अपने आप में अंत है; साध्य है, साधन नहीं। फूल का खिलना परिसमाप्ति है, आखिरी मंजिल है; उसके पार और कुछ भी नहीं। लोभ का रास्ता हमेशा हर चीज को साधन बना लेता है। निर्वाण का रास्ता प्रत्येक चीज को साध्य मानता है। कोई चीज किसी और का साधन नहीं है। तुम तो हर चीज को साधन बना लेते हो। मां अगर बेटे को प्रेम भी कर रही है तो आशाएं बांध रही है-बड़ा होगा, धन कमाएगा। बस, चूक गए तुम वहीं। बेटे के प्रति प्रेम, निर्वाण का रास्ता भी हो सकता था। ___ पत्नी पति को प्रेम कर रही है, कभी-कभी अतिशय प्रेम करने लगती है तो पति डर जाता है। जरूर जेब में हाथ डालेगी। अन्यथा कोई फिक्र नहीं करता एक-दूसरे की। जब कुछ काम लेना हो, नए गहने बनवाने हों, नई साड़ियां खरीदनी हों, तब पति के प्रति पत्नी अतिशय प्रेम से भर आती है। प्रेम भी साधन हो गया, निर्वाण न रहा। लोभ ने सभी चीजों को विकृत किया। लोभ ने सभी के प्रति व्यभिचार किया। __जीवन को एक और भी ढंग है देखने का, जहां प्रत्येक चीज अपना लक्ष्य है, कहीं और पार लक्ष्य नहीं है। जहां यही क्षण गंतव्य है, और कहीं गंतव्य नहीं। प्रेम प्रेम के लिए, ध्यान ध्यान के लिए। __ तुम तो अहिंसक बनते हो, ब्रह्मचर्य लेते हो, वह भी साधन है स्वर्ग जाने का। तुम तो किसी की सेवा भी करते हो तो उसमें भी नजर तुम्हारी रहती है कि परमात्मा देख रहा है कि नहीं। कितनी सेवा की है, हिसाब लिख लिया गया कि नहीं। __लोभ का रास्ता और, निर्वाण का रास्ता और। निर्वाण के रास्ते का अर्थ ही यही है कि तुम्हारे जीवन की प्रत्येक घड़ी साध्य हो जाए ब्रह्मचर्य के लिए। ब्रह्मचर्य का आनंद इतना है कि अब तुम और स्वर्ग मांगते हो? साफ है कि तुम्हें ब्रह्मचर्य का आनंद नहीं मिला; इसलिए तुम उसका फल चाहते हो। नहीं तो ब्रह्मचर्य व्यर्थ की 172
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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