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________________ लाभ-पथ नहीं, निर्वाण-पथ सूरत में मुसलमानों का एक छोटा सा समाज है। उनका गुरु चिट्ठी लिखकर देता है कि इस आदमी ने इतना दान किया; लिख दिया भगवान के नाम। और जब वह आदमी मरेगा तो वह चिट्ठी उसकी छाती पर रखकर कब्र में दबा देते हैं। उस समाज का एक आदमी मुझे मिलने आया। तो मैं सूरत में था, उसने कहा, आपका इस संबंध में क्या कहना है ? मैंने कहा, तुम जाकर जरा एकाध कब्र खोलकर तो देखो; चिट्ठी वहीं की वहीं पाओगे। वह बोला कि यह भी ठीक आपने कहा। यह मुझे खयाल ही न आया। चिट्ठियां भगवान के नाम लिखकर दी जा रही हैं, कि इस आदमी ने इतना-इतना किया, इसका खयाल रखना। स्वर्ग में जरा जगह निकट देना। ___ 'लाभ का रास्ता दूसरा, निर्वाण का रास्ता दूसरा है। बुद्ध का श्रावक भिक्षु इसे ठीक से पहचानकर सत्कार का कभी अभिनंदन न करे और विवेक (एकांतवास) को बढ़ाता जाए।' वह भी है दस्ते-हविश दस्ते-दुआ जिसको कहें इन्फिआल अपनी खुदी का है खुदा जिसको कहें वह भी वासना ही है, जिसे हम प्रार्थना कहते हैं। और जिसको हम परमात्मा कहते हैं, वह परमात्मा नहीं, हमारे पापों का पश्चात्ताप है। तुम घबड़ा गए हो अपने पापों से, तो तुमने परमात्मा खड़ा कर लिया है। तुम्हारा परमात्मा, तुम्हारे पापों का पश्चात्ताप है; यह असली परमात्मा नहीं। यह तुमने अपने पापों की वजह से ईजाद किया है। क्योंकि इतने कर चुके, अब कोई चाहिए, जो क्षमा करे। अब तुमसे तो न होगा। अब तुम क्या करोगे? अब तो तुम इतना कर चुके-इतने जन्मों-जन्मों की श्रृंखला, इतने पाप कर्म-अब कोई चाहिए महाकरुणावान। तो बैठे हो मंदिर में, कहते हो, हे पतित-पावन! पतित होने का धंधा तुमने किया, पावन होने का धंधा तुम करो। अब तुम कह रहे हो कि मैंने तो करके दिखा दिए पाप, अब तुम करुणा करके दिखाओ। यह तुम्हारे पापों का ही पश्चात्ताप है। इसे थोड़ा समझना; अगर तुम्हारे जीवन में पाप न हो तो परमात्मा की जरूरत भी क्या? तुम्हारे जीवन में अगर पाप न हो, तो प्रार्थना की जरूरत क्या? तब तुम्हारा जीवन ही प्रार्थना होगी। प्रार्थना की अलग से कोई जरूरत न रह जाएगी। तुम्हारी श्वास-श्वास में प्रार्थना की गंध होगी। तुम्हारे उठने-बैठने में प्रार्थना का राग होगा, रंग होगा। तुम्हारे होने में प्रार्थना खिलेगी। प्रार्थना की अलग से जरूरत क्या? पाप किया है तो जरूरत है। परमात्मा को अलग से याद करने की जरूरत क्या? उसकी याद तुम्हारे श्वास-श्वास में रम जाएगी। लेकिन अभी तुम जिसे परमात्मा कहते हो, वह सिर्फ पश्चात्ताप है। वह भी है दस्ते-हविश दस्ते-दुआ जिसको कहें वह भी तृष्णा का ही हाथ है, जो प्रार्थना के बाद परमात्मा के सामने फैलता है। दस्ते दुआ जिसको कहें 171
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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