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________________ एस धम्मो सनंतनो गई फिर। और निश्चित ही, जिसे आगे खड़ा होना हो, वह शांत नहीं हो सकता। जिसे आगे खड़ा होना हो, वह उपद्रव से मुक्त नहीं हो सकता। वस्तुतः आगे खड़े होने के लिए उपद्रवी होना जरूरी है। ___ मैं एक गांव में मेहमान था। पंद्रह अगस्त का दिन था। और स्कूल के बच्चे गांव में जुलूस लेकर निकले थे, उनकी कतार बनाई गई थी। छोटा बच्चा आगे, उससे फिर बड़ा, उससे फिर बड़ा, ऐसा सिलसिले से वे खड़े थे। कतार तो बिलकुल ठीक थी, सिर्फ एक लड़का, जो सबके आगे खड़ा था और झंडा लिए था, वह इस श्रृंखला के बाहर था। तो मैंने पूछा एक लड़के को कि इस लड़के को श्रृंखला में क्यों खड़ा नहीं किया गया? क्या यह तुम्हारा अगुआ है ? उसने कहा, अगुआ नहीं है, लेकिन इसको कहीं और खड़ा करो तो लोगों को चिउटियां लेता है। इसलिए इसको झंडा देकर आगे खड़ा करना पड़ा। तुम्हारे सब राजनेता बस ऐसे ही हैं, चिउटियां! उनको कहीं भीतर खड़ा करो मत, झंझट का काम है। उनको आगे रखना पड़ता है। हालांकि वे झंडा लिए हैं, वे अकड़े हुए हैं। मगर कुल कारण उनके आगे होने का यह है कि वे उपद्रवी हैं। आगे होना हो तो उपद्रव से मुक्त होने का उपाय नहीं है; उपद्रवी होना पड़ेगा। अहंकार सब तरह की झंझटों में जीता है। झंझटें उसका भोजन है। शांति में मर जाता है। शांति उसकी मौत है। निरुपद्रवी अगर तुम हो जाओ तो अहंकार को खड़े होने की जगह नहीं रह जाती। मैं ऐ सीमाब सूरज बन के चमका हूं अंधेरों में न होने से मेरे महसूस दुनिया में कमी होगी किसी के न होने से दुनिया में कोई कमी महसूस नहीं होती। सिकंदर आते हैं और चले जाते हैं; दुनिया अपनी राह पर चलती रहती है। किसी के न होने से कमी महसूस नहीं होती। लेकिन अहंकार इसी भाषा में सोचता है कि मैं बड़ा अनिवार्य हूं, अपरिहार्य हूं। मेरे बिना दुनिया कैसे चलेगी? चांद-तारों का क्या होगा? ध्यान रखना, तुम न थे, तब भी दुनिया चली जाती थी। तुम न होओगे, तब भी चली जाएगी। यह जो थोड़ी देर का तुम्हारा होना है, इसे उपद्रव मत बनाओ। इस थोड़ी देर के होने को ऐसा शांत कर लो कि यह करीब-करीब न होने जैसा हो जाए। तुम न थे, फिर तुम न हो जाओगे। यह बीच की जो थोड़ी देर के लिए उथल-पुथल है, इसको भी ऐसी शांति से गुजार दो, जैसे कि न होना था पहले, न होना अब भी है, न होना आगे भी होगा; तो तुम अपने स्वभाव का अनुभव कर लोगे। ___यह जो थोड़ी देर के लिए आंख खुली है जीवन में, इससे तुम अपने न होने को पहचान लो। न होने की सतत धार तुम्हारे भीतर बह रही है। कल तुम न थे, कल फिर तुम न हो जाओगे। यह जो आज की थोड़ी घड़ी तुम्हें होने की मिली है, इसमें 166
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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