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________________ मौन में खिले मुखरता हित न साधा, वह दूसरे का क्या हित कर सकेगा? तुम अपने बुझे दीए लेकर दूसरों के दीए जलाने मत निकल पड़ना। खतरा यह है कि दीया तो तुम जला ही न सकोगे-कैसे जलाओगे, तुम्हारा ही बुझा है—खतरा यह है कि कहीं तुम दूसरों के दीयों के जलने की संभावना में बाधा न बन जाओ। तुम्हारी अनुकंपा होगी, मत जाना दूसरों के पास।. मैं तुम्हें सेवा नहीं सिखाता, मैं तुम्हें स्वार्थ सिखाता हूं। यद्यपि मैं जानता हूं कि जब तुम्हारा स्वार्थ पूरा होगा, तुम्हारे जीवन में सेवा आ जाएगी। सेवा परिणाम है। साधारणतः तुम्हें उलटी बात सिखाई जा रही है। लोग कहते हैं, सेवा करो तो तुम अपने को पा लोगे। मैं तुमसे कहता हूं, अपने को पा लो तो सेवा हो सकेगी। तुम सेवा करोगे कैसे? तुम्हारे पास है क्या जो तुम देने जाओगे? तुम अपना जहर ही दूसरों की जिंदगी में मत डाल आना। ___ और यही हो रहा है। पति कहता है, मैं पत्नी को प्रेम करता हूं, उसका सुख चाहता हूं। लेकिन पत्नी से पूछो, वह कहती है, यह आदमी दुख दे रहा है। पत्नी सोचती है, मैं पति को सुख दे रही हूं, सारा इंतजाम सुख देने का कर रही हूं, चौबीस घंटे उसी की सेवा में रत हूं। पति से पूछो कि पत्नी से सुख मिल रहा है? वह कह रहा है कि अकेले थे तब सुखी थे, मगर यह बड़ी देर से पता चला। अब फिर अकेले होना चाहते हैं। लेकिन अब बड़ा मुश्किल है। पत्नी है, बच्चे हैं, उत्तरदायित्व है। तुम्हें अपने अकेले होने का सुख तभी पता चलता है, जब दूसरा बंध जाता है और दुख शुरू हो जाता है। मां-बाप कहते हैं, हम बच्चों के सुख के लिए सब कर रहे हैं। बच्चों से भी तो पूछो! बच्चे कहते हैं, ये दुष्ट हैं, ये सता रहे हैं, स्वतंत्रता नष्ट कर रहे हैं, अपने को हमारे ऊपर जबर्दस्ती थोप रहे हैं। मां बैठी है, बच्चे को टेबल पर खाना खिला रही है। आंसू बह रहे हैं बच्चे के, वह खाना नहीं चाहता, मां डंडा लिए बैठी है। ढूंस रहा है बच्चा किसी तरह। और देखो उसके आंसू बह रहे हैं। और मां उस पर कृपा कर रही है, सेवा कर रही है। बच्चे से पूछो। बच्चे कहते हैं, कितनी जल्दी बड़े हो जाएं, बस! ताकि यह झंझट मिटे। ___ एक मां अपने छोटे लड़के को पालक की सब्जी खाने के लिए जबर्दस्ती कर रही थी। अब पालक! उसे समझा रही थी, इससे ताकत आएगी, शक्ति बढ़ेगी। बच्चा रो रहा है। उसने कहा, अच्छा खाए लेता हूं! लेकिन इसीलिए खा रहा हूं कि शक्ति बढ़ जाए, ताकि मुझे फिर कोई पालक न खिला सके। ___ तुम थोपे जा रहे हो। तुम्हारी सेवा से यह संसार बना है—इतना कुरूप, इतना वीभत्स, इतना रुग्ण। और सब एक-दूसरे की सेवा कर रहे हैं, सब एक-दूसरे को प्रेम कर रहे हैं, करुणा बरस रही है। और परिणाम क्या है? ___ कहीं कुछ भूल हो रही है। कहीं कोई बड़ी बुनियादी भूल हो रही है। और वह भूल यह है कि तुम्हें खुद जीवन का कोई रस नहीं आया और तुम दूसरे को रस देने 143
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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