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________________ एस धम्मो सनंतनो वही एकमात्र राह है कि दूसरों के ऊपर तुम्हारा आनंद बरस सके और उन्हें मिल सके। अपने भीतर का दीया जला लो तो दूसरों को भी तुम्हारी रोशनी दिखाई पड़ने लगे; तुम्हारे दीए की रोशनी में कोई दूसरा भी राह खोज ले सकता है। यही तो सत्संग का अर्थ है। किसी और के दीए की रोशनी में तुम राह खोजते हो-राह है कि तुम्हारा अपना दीया भी तुम जला लो। जो शांति को उपलब्ध है, उसके आसपास शांति बरसती है। जो परमात्मा को उपलब्ध है, उसके आसपास परमात्मा परिक्रमा करता है। परमात्मा को उपलब्ध व्यक्ति के पास पहुंचकर तुम्हें भी परमात्मा की पगध्वनियां सुनाई पड़ने लगेंगी, तुम्हें भी स्पर्श होने लगेगा किसी अनूठी घटना का, तुम भी अपने को किसी और ही बहाव में बहता हुआ पाओगे। सत्संग का अर्थ है : ऐसा व्यक्ति, जो सत्य को पा गया है। तुम उसकी लहर का लाभ ले लेना; अपना पाल खोल देना, उसकी हवा आए, तुम्हें भी ले जाए। नदी में या तो पतवार चलाओ. या पाल खोल दो। अहंकारं पतवार चलाता है, पाल नहीं खोलता। अहंकार अपनी ही चेष्टा करता है, परमात्मा को कुछ नहीं करने देता। सत्संग का अर्थ है : रखो पतवार अलग, बहुत खे ली, कितने जन्मों से खे रहे हो, पहुंचे कहां? किनारे से दूर भी नहीं गए हो, खूटियां किनारे पर ही गड़ी हैं। नाव जंजीरों से बंधी है और तुम पतवारें चला रहे हो? नाहक मेहनत कर रहे हो, व्यर्थ पसीना-पसीना हुए जा रहे हो। कितने जन्म गंवा दिए। छोड़ो, पाल खोलो। हवाओं का रुख पहचानो। अगर पूरब जाना है तो देखो, कब हवाएं पूरब जा रही हैं, तब पाल खोल दो और हवाओं पर सवार हो जाओ। जब तुम किसी परमात्मा को उपलब्ध व्यक्ति के पास पहुंचते हो, अपने पाल खोल दो। वह आदमी परमात्मा की तरफ जा ही रहा है, जा ही रहा है, जा ही रहा है-तुम भी सवार हो जाओ। तुम भी थोड़ी देर उसकी रौ में बह लो। तुम भी थोड़ा स्वाद ले लो। माना, दीया उसका है—उसकी रोशनी में तुम भी अपने अंधेरे रास्ते को थोड़ा रोशन कर लो। स्वार्थ सिखाता हूं, क्योंकि तुम अगर हो जाओ, तुम अगर आनंदित होओ, शांत होओ, प्रफुल्ल होओ, तुम्हारे जीवन में फूल खिलें-दूसरों को गंध भी मिलेगी। अगर वे न लेना चाहें, बात अलग। क्योंकि फूल के पास से भी तुम अपनी नाक रूमाल से बंद करके गुजर जा सकते हो, इसमें फूल बेचारा क्या करे! सूरज नाचता हो चारों तरफ, तुम आंख बंद करके बैठे रह सकते हो, इसमें सूरज बेचारा क्या करे! यह तुम्हारी मर्जी। लेकिन मैंने एक ही बात जानी है अब तक : उन्हीं से परार्थ हुआ है, जिन्होंने पहले स्वार्थ साध लिया है। और यह बात ठीक है, गणित की है, साफ है। क्योंकि जो अपना ही नहीं हुआ अभी, वह दूसरे का क्या हित कर सकेगा? जिसने अपना 142
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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