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मौन में खिले मुखरता
बड़ी उलझन की बात है। पहले तुम अहंकार को स्व समझ लिए, वहीं भूल हो गई। वह तुम्हारा स्व नहीं, वह तुम्हारी आत्मा नहीं, वह तुम नहीं-वह एक झूठ है, जो तुमने ईजाद की और समाज ने तुम्हारी ईजाद में सहारा दिया। क्योंकि समाज चाहता है, तुम सच्चे न होओ, झूठे होओ। झूठों पर हुकूमत करनी आसान है। सच्चे बगावती होते हैं। सत्य विद्रोही है। झूठ अनुगामी हो जाता है। झूठा व्यक्तित्व डरा रहता है। ___ तो समाज के ठेकेदार चाहते हैं तुम झूठे रहो। राजनेता चाहते हैं तुम झूठे रहो। पंडित-पुरोहित चाहते हैं तुम झूठे रहो। तुम जितने झूठे हो उतना ही उनका धंधा ठीक से चलता है। तुम जितने सच्चे हुए उतना ही उनका धंधा टूटने लगता है। सच्चे आदमी को कहां जगह है मंदिरों में? सच्चे आदमी की कहां गुंजाइश है मस्जिदों में? सच्चे आदमी की कहीं भी तो जगह नहीं।
जीसस ने कहा है, लोमड़ियों को भी जगह है छिपा लेने को सिर, मेरे लिए नहीं। ___ अहंकार झूठ है। अहंकार का अर्थ क्या होता है? अहंकार का अर्थ होता है : मैं इस समस्त अस्तित्व से अलग हूं, अलग-थलग हूं। मैं मैं हूं और यह सारा संसार मुझसे अलग है। यह सारा अस्तित्व अलग है, मैं अलग हूं। यह अहंकार का अर्थ है। यह झूठ है। तुम अलग नहीं हो, एक क्षण को अलग नहीं हो। श्वास से जुड़े हो, सूरज की किरणों से जुड़े हो, भोजन से जुड़े हो, सब तरफ से जुड़े हो, चैतन्य से भी जुड़े हो। __ जैसे रोज-रोज तुम भोजन लेते हो और शरीर जीता है, ऐसे रोज-रोज तुम परमात्मा भी पीते हो और आत्मा जीती है, अन्यथा आत्मा भी न जी सकेगी। जुड़े हो, एक हो। अहंकार भ्रम है।
तो पहले तो एक भ्रम को मान लिया कि अहंकार है, एक झूठ स्वीकार कर लिया। अब जब अहंकार मान लिया तो स्वार्थ बुरा हो गया। स्वार्थ बुरा हो गया तो तुम्हें शिक्षक मिल जाते हैं जो परार्थ सिखाते हैं। अब बुनियाद से झूठ खड़ी हो गई। बुनियाद में अहंकार को मान लिया, मैं हूं। मैं मान लिया तो अब मैं के आधार पर जितने काम तुम करते हो, वे सब बुरे मालूम पड़ते हैं। क्योंकि मैं झूठ है, झूठ के सहारे जो भी होगा पाप होगा। तो स्वार्थ बुरा हो गया। अब जब स्वार्थ बुरा हो गया तो इलाज क्या करें? बीमारी पकड़ गई तो औषधि चाहिए, तो परार्थ करो।
लेकिन मजा यह है, बुनियाद को ही हम क्यों न बदल डालें? गलत बुनियाद पर क्यों यह मकान खड़ा करें? बुनियाद झूठ, फिर पहली मंजिल खड़ी होती है स्वार्थ की, उसके ऊपर परार्थ की दूसरी मंजिल खड़ी होती है। तुम्हारा स्वार्थ भी झूठा, तुम्हारा परार्थ भी झूठा, क्योंकि तुम झूठे हो। ___मैं तुम्हें स्वार्थ सिखाता हूं। क्योंकि मैं जानता हूं, तुम्हारे परम स्वार्थ में ही परार्थ संभव है, अन्यथा नहीं। मैं तुमसे कहता हूं, तुम अपने आनंद को पा लो। क्योंकि
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