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________________ एस धम्मो सनंतनो पतंजलि ने समाधि की यही परिभाषा की है । समाधि का अर्थ है : सुषुप्ति + होश । होश भी हो और सुषुप्ति जैसी प्रगाढ़ शांत दशा हो, जहां तरंग भी नहीं उठती! डूबो मौन में। तुम अनिर्वचनीय रस वहां से पाओगे। यद्यपि जैसे-जैसे तुम मौन में ठहरने लगोगे, वैसे-वैसे तुम यह भी पाओगे, अब तुम जो थोड़ा-बहुत बोलते हो उसमें सत्य आने लगा। क्योंकि जिसने अपना रस जाना, वह दूसरे के मंतव्यों की चिंता छोड़ने लगता है। अब असली बात अपने रस की रह जाती है, अब दूसरे से क्या प्रयोजन ? जिसको अपने सौंदर्य का भरोसा आ गया, अब वह इसकी फिक्र नहीं करता कि लोग उसे सुंदर कहते हैं या नहीं कहते हैं । सारी दुनिया उसे असुंदर कहे, भेद नहीं पड़ेगा; उसे अपने सौंदर्य की मस्ती आ गई। जिसे अपने भीतर का सत्य पता चलने लगा, अब वह इसकी चिंता नहीं करता कि लोग उसे सच्चा मानते हैं या नहीं मानते; अब लोगों की बात का कोई मूल्य नहीं है । तुम लोगों की बात का इतना विचार करते हो, क्योंकि तुम्हें अपने पर कोई भरोसा नहीं । तुम्हारा सब भरोसा उधार है। पहले तुम लोगों की आंखों में देखते हो : कोई सुंदर कह रहा है? कोई साधु मान रहा है ? तो तुम्हें भी भरोसा आता है। आश्चर्य! तुम्हें अपनी साधुता का खुद पता नहीं चलता; इसे भी तुम दूसरे से पूछने जाते हो! तो जैसे-जैसे भीड़ बड़ी होने लगती है तुम्हें साधु मानने की, उतना ही तुम आत्मविश्वास से भरने लगते हो कि निश्चित ही मैं साधु हूं। यह भी बड़ा मजा हुआ, मजाक हुआ, अपना पता तुम्हें नहीं, उसको भी तुम उधार पता लगाते हो! तुम्हें अपने भीतर के आनंद का कोई बोध नहीं; लोग अगर तुमसे कहें कि बड़े आनंदित हैं आप, बड़े प्रसन्नचित्त हैं, जब दिखाई पड़ते हैं तभी जैसे बहार आई हो, जब देखते हैं तभी जैसे आंखों में फूल खिले हों, आप बड़े खुशदिल हैं - तुम मुस्कुराने लगते हो। लोग तुम्हें भरोसा दिला देते हैं । और धीरे-धीरे तुम मान लेते हो कि तुम खुशदिल हो, बड़े प्रसन्नचित्त हो । जरा गौर से तुम अपनी मान्यता को फिर से उलट-पुलटकर देखना - जो तुमने अपने संबंध में बना रखी है— दूसरों ने बना दी । हार्वर्ड विश्वविद्यालय में मनोवैज्ञानिक एक प्रयोग कर रहे थे। उन्होंने एक कक्षा के विद्यार्थियों को दो हिस्सों में बांट दिया। आधे विद्यार्थियों को कहा अलग कमरे में, यह सवाल जो तख्ते पर लिखा जा रहा है, बहुत कठिन है; यह इतना कठिन है कि कोई आशा नहीं कि तुम में से कोई भी इसे हल कर पाएगा। तुमसे ऊपर की कक्षाओं के विद्यार्थी भी इसे हल करने में कठिनाई पाते हैं । यह तो बड़े गणितज्ञ ही इसे हल कर सकते हैं। लेकिन सिर्फ जानने के लिए दिया जा रहा है, हो सकता है संयोग से, शायद — इसका कोई जरा भी आश्वासन नहीं है - शायद तुम में से कोई थोड़ा-बहुत इसको हल करने की दिशा में ठीक चल पाए। पूरा हल कर पाए, यह 126
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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