SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुण्यातीत ले जाए, साधु बताया कि शीतल प्रसाद ! कवि ने कहा, महाराज! ज्वाला प्रसाद होता तो ठीक था। शीतल प्रसाद जमता नहीं । ऊपर से ढांक लोगे, भीतर न हो जाएगा। भीतर ज्वाला ही रहेगी, ऊपर से तुम कितने ही शीतल प्रसाद हो जाओ । नहीं, अहिंसा को ऊपर से मत थोपना, न सत्य को ऊपर से ओढ़ना । यह कोई राम-नाम की चदरिया नहीं है कि ओढ़ ली और भक्त हो गए। तुम वही करते रहोगे । जो तुम कल हिंसा के नाम से करते थे, वही तुम अहिंसा के नाम से करते रहोगे । तुम्हें कुछ और आता ही नहीं। तो तुम्हारी अहिंसा भी हिंसा का माध्यम बन जाएगी। तुम जरा देखो, घर में एकाध आदमी धार्मिक हो जाए दुर्भाग्य से तो सारे घर को सिर पर उठा लेता है। एक महिला मेरे पास आती थी, उसने कहा कि मेरे पति को किसी तरह समझाइये, वे धार्मिक हो गए हैं। मैंने कहा, इसमें क्या अड़चन है? कहा, वे दो बजे रात उठकर जपुजी का जोर-जोर से पाठ करते हैं। सरदार हैं । दो बजे रात ! और सरदार! और जपुजी का पाठ ! मैंने कहा, बात तो अड़चन की हो गई। तुम उनको लेकर आना । - मैंने उनसे पूछा – वे बड़े प्रसन्न थे – उन्होंने कहा, भोर सुबह पाठ करता हूं जपुजी का, इसमें क्या खराबी है? मैंने कहा, दो बजे रात को तुम सुबह कहते हो ? अंग्रेजी हिसाब से ठीक ही कहते हैं; बारह बजे के बाद सुबह शुरू हो जाती है। मैंने कहा, अगर धीरे-धीरे पढ़ो तो कुछ हर्जा है ? उन्होंने कहा, मजा ही नहीं. आता। पर मैंने कहा, ये बच्चे और पत्नी और पड़ोसी, इनका भी कुछ खयाल करो ! वे बोले, इनको क्या हानि है ? ये भी उठ जाएं। और इनको सोए-सोए भी अगर जपुजी का अमृत-वचन इनके कान में पड़ जाता है, तो लाभ ही है। अब यह हिंसा है। यह जपुजी का पाठ नहीं। इससे तो यह सुबह उठकर फिल्मी गाना गुनगुनाता तो भी अहिंसा होती । अब जपुजी का यह पाठ न हुआ । यह तो कोई भीतरी पागलपन है। और रस यह यही ले रहा है और इसने ढंग ऐसा चुना है धार्मिक, कि कोई एतराज भी नहीं कर सकता । उसकी पत्नी कहने लगी, हम जिनसे कहते हैं, वे यही कहते हैं कि भई, यह तो धार्मिक बात है, अब इसमें क्या करें ? साधु-संतों के पास ले जाते हैं, वे कहते हैं, यह तो ठीक ही कर रहे हैं। बामुश्किल उनको मैं राजी कर पाया : चार बजे, कम से कम तुम दो से चार पर तो उतरो। वे बड़े दुख से राजी हुए, जैसे कि स्वर्ग खोया जा रहा है । बामुश्किल उनको राजी कर पाया कि थोड़ा धीरे, इतने जोर से मत चिल्लाओ । क्योंकि परमात्मा बहरा नहीं है, धीरे-धीरे भी सुन लेगा। इनको क्यों कष्ट दे रहे हो - बच्चों को, पत्नी को? मगर उनको लगता ही नहीं कि वे कष्ट दे रहे हैं। 111
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy