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________________ एस धम्मो सनंतनो और जिसे सोचा था कि कुम्हला गया, सूख गया फूल है, उससे नई महक आने लगी! नव-जन्म हुआ! पुनर्जन्म हुआ! आज की सुबह शबहाए-तमन्ना की सहर और जिसकी अब तक प्रतीक्षा की थी—प्रतीक्षा ही प्रतीक्षा की थी—वह सुबह आ गई। रात गई, सुबह हुई! आज की सुबह मेरे कैफ का अंदाज न कर ऐसे अपूर्व महोत्सव से कोई मंदिर बनाता है। ऐसे अपूर्व महोत्सव से कोई पूजा करता है। ऐसे अपूर्व महोत्सव से कोई किसी की सेवा करता है। ऐसे अपूर्व महोत्सव से भीतर जो सुगंध आई, कोई बांटने निकल पड़ता है। लेकिन ध्यान रखना, दूसरे पर नजर नहीं है। अब भीतर किरण फूटी है, करोगे भी क्या? बांटोगे न तो करोगे क्या? भीतर गंध भर गई है, बिखेरोगे न तो करोगे क्या? भीतर मेघ भर गया है, बरसोगे न तो करोगे क्या? आज की सुबह मेरे कैफ का अंदाज न कर दिले-वीरां में अजब अंजुमन आराई है इस महोत्सव को, इस पुण्य की घड़ी को बुद्ध ने 'साधु' कहा है। अनुवाद चूक जाता है बात को। अनुवाद तो ठीक है : वह काम शुभ नहीं। काम का सवाल ही नहीं है, तुम्हारा सवाल है। यह काम की चिंता के कारण ही तो सब उपद्रव हुआ है। तो लोग सोचते हैं, अच्छा काम करेंगे तो अच्छे हो जाएंगे। गलत! बात उलटी है: अच्छे हो जाओगे तो अच्छे काम होंगे। काम भीतर से आते हैं। इस खयाल ने कितनों को भरमाया है, कितनों को भटकाया है, कितना भटकाया है, कि अच्छे काम कर लेंगे तो अच्छे हो जाएंगे। तो फिर हम ऊपर से अपने को सुधारते चले जाते हैं। झूठ नहीं बोलते, इसकी कसम ले लेते हैं। झूठ भीतर रह जाता है, हम ऊपर सच बोलने लगते हैं। झूठ भीतर रह जाता है। अहिंसा का व्रत ले लेते हैं, हिंसा भीतर भरी रह जाती है। . एक जैन मुनि हुए। बड़े प्रसिद्ध मुनि थे। नाम था शीतल प्रसाद। आगरा उनका आगमन हुआ। आगरा में एक कवि रहते थे, बनारसी दास। वे उनके दर्शन को गए। कवि थे, मस्त आदमी थे! पूछा कि महाराज, आपका नाम जान सकता हूं? उन्होंने कहा, मेरा नाम शीतल प्रसाद है। फिर कुछ बात चलने लगी। कवि जरा भुलक्कड़ स्वभाव के थे। थोड़ी देर बाद भूल गए। उन्होंने कहा, महाराज! आपका नाम जान सकता हूं? मुनि थोड़े नाराज हुए। कहा, कह दियाः शीतल प्रसाद! फिर थोड़ी बात चली। कवि फिर भूल गए। वे जरा भुलक्कड़ थे। उन्होंने पूछा, महाराज! आपका नाम जान सकता हूं? तो शीतल प्रसाद ने डंडा उठा लिया और कहा कि मूरख! कितनी बार 110
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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