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पुण्यातीत ले जाए, वही साधु-कर्म आनंद आता है। इससे किसी और का लेना-देना नहीं। मंदिर बनाता है, क्योंकि मंदिर बनाने में ही उसके भीतर एक तृप्ति, एक चैन, एक आनंद का महोत्सव होता है।
आज की सुबह मेरे कैफ का अंदाज न कर दिले-वीरां में अजब अंजुमन आराई है ये जमीं खित्त-ए-फिरदौस को शर्माने लगी गुले-अफसुर्दा से नौखेज महक आने लगी आज की सुबह शबहाए-तमन्ना की सहर
आज की सुबह मेरे कैफ का अंदाज न कर जब किसी के जीवन में आनंद उतरता है-कृत्य की तरह नहीं, अस्तित्व की तरह...।
आज की सुबह मेरे कैफ का अंदाज न कर फिर तुम अनुमान न कर सकोगे उसकी सुबह का! फिर उसके भीतर जो सूरज उगा है, तुम उसकी कल्पना भी न कर सकोगे। ... आज की सुबह मेरे कैफ का अंदाज न कर
फिर उसकी मस्ती का तुम हिसाब न लगा सकोगे। उसके भीतर एक सागर लहराता है, और तुम्हें बूंदों का भी पता नहीं। कैसे तुम अंदाज करोगे? कैसे तुम अनुमान लगाओगे?
आज की सुबह मेरे कैफ का अंदाज न कर . दिले-वीरां में अजब अंजुमन आराई है कल तक जो उजाड़ रेगिस्तान था हृदय का, वहां एक महोत्सव उतर आया है।
दिले-वीरां में अजब अंजुमन आराई है जिसको उतरता है, वह भी चकित रह जाता है। वह भी भरोसा नहीं कर पाता कि यह क्या हो रहा है!
दिले-वीरां में अजब अंजुमन आराई है . कोई महोत्सव उतर आया! जहां कभी कोई आवाज न उठी थी, वहां कोई गीत गूंजने लगा। जहां दूर-दूर तक सूखे रेगिस्तान थे, वहां हरियाली उमग आई।
आज की सुबह मेरे कैफ का अंदाज न कर दिले-वीरां में अजब अंजमन आराई है।
ये जमीं खित्त-ए-फिरदौस को शर्माने लगी यह जमीन स्वर्ग को शर्माने लगी। स्वर्ग झेंपा-झेंपा है! स्वर्ग ईर्ष्या से भर गया है! जिसके भीतर साधुता आई उसके लिए जमीन स्वर्ग हो गई, उसके लिए यही क्षण परम क्षण हो गया।
ये जमीं खित्त-ए-फिरदौस को शर्माने लगी गुले-अफसुर्दा से नौखेज महक आने लगी
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