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________________ एस धम्मो सनंतनो 'वह काम साधु नहीं, जिसे करके पीछे मनुष्य को पछताना पड़े।' ____ अब थोड़ा समझने की कोशिश करना। जब हम कहते हैं शुभ तो जोर कर्म पर हो जाता है, और जब हम कहते हैं साधु तो जोर होने पर हो जाता है। तुम असाधु रहकर भी एक कर्म शुभ कर सकते हो। चोर भी दान दे सकता है, चोर ही देते हैं। क्योंकि दान देने के लिए लाओगे कहां से? असाधु भी शुभ कृत्य कर सकता है, इसमें कोई अड़चन नहीं। हत्यारा भी मंदिर बना सकता है। कृत्य तो तुम्हारे होने के विपरीत भी हो सकता है। . इसलिए बुद्ध का शब्द बड़ा बहुमूल्य है। वे कहते हैं, साधु; शुभ नहीं। वे कहते हैं, एक कृत्य कर लिया अच्छा, इससे क्या होगा? अच्छा होना चाहिए तुम्हें भीतर। कृत्यों का हिसाब मत रखो, होने का हिसाब रखो। तुम्हारा होने का ढंग पुण्य रूप हो। तुम्हारे कर्मों की चिंता नहीं है कि तुम अच्छे कर्म करो-तुम अच्छे हो जाओ। जब तक तुम शुभ कर्म करते हो, तब तक जरूरी नहीं है कि तुम शुभ हो गए हो। अक्सर तो ऐसा होता है कि आदमी भीतर अशुभ होता है, ढांकने के लिए शुभ कर्म करता है। पापी तीर्थयात्रा को जाते हैं। और कोई जाएगा भी क्यों? धोखेबाज, बेईमान मंदिरों-मस्जिदों में प्रार्थना करते हैं। और कोई करेगा भी क्यों? ___हम जो भीतर हैं, उससे हम डरते हैं, तो उससे विपरीत का आवरण ओढ़ते हैं। भीतर जितनी कालिख होती है, उतने हम शुभ्र वस्त्रों में उसे ढांकते हैं। भीतर जितनी दीनता होती है, उतने कीमती वस्त्रों में हम उसे ढांकते हैं। किसी को पता न चल जाए भीतर की दरिद्रता। भीतर पतझर हो, तो हम बाहर उधार वसंत की अफवाह फैला देते हैं। ___ तुम लोगों को गौर से देखना। अक्सर तुम पाओगे: वे जो करते हैं, उससे ठीक उलटे हैं। करना उनकी होशियारी का हिस्सा है। राम-राम जपते हैं, क्योंकि काम उन्हें ऐसे करने हैं कि जब तक वे राम-राम न जपें तब तक पर्दा न पड़ेगा। पर्दा डालते हैं। पर्दे के पीछे सारा खेल चलता है। बुद्ध का शब्द बड़ा महत्वपूर्ण है। वे यह नहीं कहते कि तुम शुभ कर्म करो, वे कहते हैं, तुम साधु हो जाओ। कर्म तो अपने से सुधर जाएंगे, तुम साधु हो जाओ। तुम्हारा होना शुभ हो, फिर तुम चिंता मत करो। और यह समझने की बात है कि अगर असाधु शुभ कर्म भी करे तो भी परिणाम अशुभ ही होगा। साधु अशुभ कर्म कर ही नहीं सकता, लेकिन ऐसा हो सकता है कि तुम्हें अशुभ लगे, लेकिन अशुभ हो नहीं सकता। __साधु का अर्थ ही यह है कि उसके कृत्य छिपाने के लिए नहीं, उसके कृत्य ढांकने के लिए नहीं, उसके कृत्य पाखंड नहीं हैं-उसके कृत्य उसकी भीतर की समस्वरता से पैदा होते हैं। अगर वह मंदिर बनाता है तो गांव में अफवाह फैला देने के लिए नहीं कि मैं धार्मिक हूं। वह मंदिर बनाता है, क्योंकि मंदिर बनाने में उसे 108
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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