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एस धम्मो सनंतनो
तुम गौर से देखना, जिनको तुम धार्मिक कहते हो, वे ज्यादा क्रोधी हो जाते हैं, ज्यादा अहंकारी हो जाते हैं। छोटा-मोटा शुभ कृत्य कर लेते हैं तो उनकी अकड़ की कोई सीमा नहीं।
एक बात खयाल रहे, कि तुम न बदलोगे तो कुछ फर्क न होगा। तुम जो जानते हो, तुम जो करते रहे हो, उसे दबाने से कुछ फर्क न पड़ेगा, वह अपने विपरीत नाम के नीचे भी चलता रहेगा।
मेरे गांव में एक मुसलमान रंगरेज था, शायद अब भी है। कोई पांच साल पहले जब मैं गया, तब भी वह जिंदा था। बहुत बूढ़ा आदमी है, सौ के पार उसकी उम्र हो गई है। जब मैं छोटा था तब भी वह कोई सत्तर साल का था। सामने ही उसकी दुकान थी। खुदाबख्श उसका नाम है। बड़ा प्यारा आदमी है! आंखें कमजोर हैं। तो मैं उसके सामने अक्सर उसकी दुकान पर बैठा रहता था। कपड़े उसके रंगाना, उसका रंगने का काम देखना-मुझे रस था। एक बात से मैं बड़ा हैरान होता कि जब भी कोई स्त्रियां आती, स्त्रियों का ही आना-जाना था, ओढ़नी, कपड़े, साड़ियां रंगवाने, तो कोई कहती कि इंद्रधनुषी रंग में रंग दो, कोई कहती प्याजी, कोई कहती कि मोरपंखी! मगर वह बूढ़ा कहता कि मेरी बहू-बेटी को तो लाल, हरा, पीला, काला यही रंग सोहेगा, वैसे तुम जो कहो वह रंग रंग दें।
यह मैंने बहुत बार सुना। मैंने उससे पूछा कि बाबा, अब ये लोग कहते हैं तो तुम इसी रंग में रंग क्यों नहीं देते? उसने कहा, अब तुमसे क्या कहें? मुझे दिखाई पड़ता नहीं। और चार रंग ही मुझे रंगने आते हैं। बहू-बेटियों से इसका कोई लेना-देना नहीं है।
तो जो भी आये, वह कहता कि जंचेगा तो हरा, मेरी बहू-बेटी को। वैसे तुम जो कहो वह रंग दें। कभी-कभी मैंने यह भी देखा कि वह बहू-बेटी जिद्द करती, न सुनती बूढ़े की; वह कहती कि नहीं, तुम तो प्याजी रंग दो। तो वह कहता, ठीक है। लेकिन जब रंग के आती ओढ़नी, तो हरी, लाल, पीली...। वह उतने ही रंग जानता था।
तुम अगर हिंसा का रंग ही जानते हो, तुम अहिंसा को भी उसी में रंग लोगे। तुम अगर क्रोध का ही रंग जानते हो, तुम्हारी करुणा में भी क्रोध ही आ जाएगा। ___ इस धोखे से बचना। यह पाखंड बड़े से बड़ा खतरा है धार्मिक यात्रा में।
भीतर से बदलो तो बाहर रंग बदल जाते हैं। बाहर से रंग मत बदलना, भीतर कुछ भी नहीं बदलता। क्योंकि भीतर बलशाली हो तुम। बाहर तो परिधि है, कुछ भी नहीं है। ___ अंतरात्मा से आचरण बदले, तो शुभ, तो साधु। आचरण से अंतरात्मा बदलने की चेष्टा करो, तो साधु नहीं, शुभ भी नहीं; साधु और शुभ होना तो दूर, तुम बुद्धिमान भी नहीं।
'वह काम साधु है जिसे करके पीछे पछताना न पड़े।'
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