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पुण्यातीत ले जाए, वही साधु-कर्म
भटकाए, जो तुम्हें अपने से दूर ले जाए, जिसके कारण तुम्हारा तुमसे ही फासला बढ़ता जाए, जिसके कारण ऐसी घड़ी आ जाए कि तम्हें यह पता ही न रहे कि तम कौन हो, तुम कहां से हो, तुम क्यों हो, कहां जाते हो, कुछ भी पता न रहे, तुम्हारी अवस्था पूरी तरह बेहोश हो जाए। जो मूर्छा लाए, वह पाप। जो जागृति को सम्हलने में सहायता दे, वह पुण्य।
इसलिए बंधी लकीरों पर मत सोचना, क्योंकि बंधी लकीरों से हल नहीं होगा। तुम पुण्य भी कर सकते हो शास्त्रानुसार, लेकिन अगर वह तुम्हें भीतर नहीं ले जा रहा है तो पाप हो गया।
समझो। तुम दान दे सकते हो। ऐसा कोई शास्त्र पृथ्वी पर नहीं है जो कहता हो, दान देना पुण्य नहीं। दान देना पुण्य है, यह सोचकर तुम दान दे सकते हो। और दान देकर तुम्हारा अहंकार मजबूत कर सकते हो कि मैं दानी हं, कि मुझ जैसा दानी कोई भी नहीं है। तुम चूक गए। तुमने शास्त्र की बात तो पूरी कर दी, लेकिन तुम जीवन के शास्त्र को न समझ पाए। यह पुण्य भी तुम्हें अपने से दूर ले गया। तुम और अहंकारी बने। तुम और अकड़कर चलने लगे। विनम्रता न आई। निर्दोष भाव न आया। तुम और भी चालाक हो गए। तुमने न केवल इस दुनिया का हिसाब सम्हाल लिया, परलोक का हिसाब भी सम्हाल लिया। तुमने न केवल यहां मकान बना लिए, तुमने परलोक में भी मकान बना लिए। तुमने संसार को ही नहीं सम्हाल लिया, तुमने परमात्मा को भी सम्हाल लिया। तुम अपने से और भी दूर चले गए। __यह दान पुण्य न हुआ, क्योंकि यह दान समझ पर आधारित न था। भय पर आधारित भला हो, लोभ पर आधारित भला हो, कि दान करने से परमात्मा प्रसन्न होगा, कि दान करने से पुण्य होगा, कि पुण्यकर्ता को आनंद के द्वार खुलते हैं, कि पुण्यकर्ता को नरक की पीड़ा नहीं झेलनी पड़ती, कि पुण्यकर्ता दुख से बच जाता है। यह पुण्य लोभ और भय पर खड़ा है।
मैंने सुना है, एक मुसलमान टेलर था, दर्जी था। वह बीमार पड़ा। करीब-करीब मरने के करीब पहुंच गया था। आखिरी जैसे घड़ियां गिनता था, कि रात उसने एक सपना देखा कि वह मर गया और कब्र में दफनाया जा रहा है। बड़ा हैरान हुआ, कब्र में रंग-बिरंगी बहुत सी झंडियां लगी हैं। उसने पास खड़े एक फरिश्ते से पूछा कि ये झंडियां यहां क्यों लगी हैं? दर्जी था, कपड़े में उत्सुकता भी स्वाभाविक थी। उस फरिश्ते ने कहा, जिन-जिन के तुमने कपड़े चुराए हैं, जितने-जितने कपड़े चुराए हैं, उनके प्रतीक के रूप में ये झंडियां लगी हैं। परमात्मा इनसे हिसाब करेगा।
वह घबड़ा गया। उसने कहा, हे अल्लाह! रहम कर! झंडियों का कोई अंत ही न था। घबड़ाहट में अल्लाह की आवाज की, उसमें नींद खुल गई। ठीक हो गया फिर। जब दुकान पर वापस आया तो उसके दो शागिर्द थे जो उसके साथ कपड़ा सीने का काम सीखते थे। उसने कहा कि सुनो, अब एक बात का ध्यान रखना। मुझे
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