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एस धम्मो सनंतनो
सत्र के पूर्व एक बहुत बुनियादी बात समझ लेनी जरूरी है।
मनुष्य के जीवन को हम दो खंडों में बांट सकते हैं: एक तो मनुष्य का होना, बीइंग, और एक मनुष्य का कर्म, उसका कृत्य, डूइंग। __ कृत्य तो ऊपर-ऊपर है, परिधि पर है। जो हम करते हैं, वह हमारा सर्वस्व नहीं है, वह हमारा पूरा होना नहीं है। कृत्य तो ऐसे है, जैसे सागर की सतह पर लहरें। लहरें सागर की हैं माना, लेकिन सागर सिर्फ लहर ही नहीं है। लहरें सागर की हैं, यह भी पूरी बात नहीं लहरें सागर और हवाओं के बीच के संघर्ष से पैदा होती हैं; हवा की भी हैं उतनी ही जितनी सागर की हैं।
__ मनुष्य का कर्म दूसरे मनुष्यों के साथ पैदा होता है-हवाओं और सागर के घर्षण से। लेकिन मनुष्य का होना वहां समाप्त नहीं होता; वहां तो शुरू भी नहीं होता, बस परिधि है। तुम्हारे घर के चारों तरफ तुमने जो सीमा पर दीवाल खड़ी कर रखी है, वही कर्म है। तुम्हारा अंतर्गृह, तुम्हारी अंतरात्मा, वहां तो कर्म की कोई भी पहुंच नहीं है। वहां तो कोई तभी पहुंचता है, जब अकर्म को उपलब्ध.हो जाए। वहां तो कोई तभी पहुंचता है, जब यह जान ले कि मैं कर्ता नहीं, द्रष्टा हूं। __ लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए कर्म के जगत से तुम्हें यात्रा करनी होगी। खड़े तो तुम परिधि पर हो; तुम्हें अपने अंतःपुर का तो कोई पता नहीं है। खड़े तो तुम द्वार पर हो, सीमा पर हो; तुम्हें मंदिर के अंतर्गृह का कोई पता नहीं। चलना तो वहां से होगा। इसलिए कर्म के जगत में भी थोड़ा सा कुछ करना जरूरी है। वही पाप और पुण्य का विचार है।
ऐसा कर्म पुण्य है जो तुम्हें कर्म के पार ले जाए। समझने की कोशिश करना।
ऐसा कर्म पुण्य है जो तुम्हें बांधे न, जो परिधि पर अटकाए न, जो तुम्हें भीतर जाने की सुविधा दे, सीढ़ी बने। और ऐसा कर्म पाप है जो तुम्हें भीतर न जाने दे, द्वार पर अटका ले, सीमा पर उलझा ले।
ऐसा कर्म पुण्य है, जिसके द्वारा तुम्हारी आंख भीतर की तरफ मुड़ जाए, और ऐसा कर्म पाप है जिससे तुम बाहर की ओर अंधी यात्रा पर निकल जाओ। जो तुम्हें अपने से दूर ले जाए, वही पाप। जो तुम्हें अपने पास ले आए, वही पुण्य। ___ शास्त्रों ने क्या कहा, इसकी बहुत चिंता मत करना। शास्त्रों से जो पाप और पुण्य का विचार करता है, वह बहुत दूर नहीं जाता। क्योंकि समय बदलता है, परिस्थिति बदलती है। कल के पुण्य आज के पाप हो जाते हैं, और आज के पाप कल के पुण्य हो जाते हैं। अगर तुम्हारे पास कसौटी है तो तुम्हें कभी अड़चन न आएगी। बदलती हुई परिस्थितियों में भी तुम एक कसौटी पर सदा कसते रहना ः जो तुम्हें भीतर ले जाए वह पुण्य है, जो तुम्हें बाहर ले जाए वह पाप है। जो तुम्हें
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