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________________ एस धम्मो सनंतनो अपने पर भरोसा नहीं है। कपड़ा कीमती आ जाएगा तो मैं चुराऊंगा ही। पुरानी आदत समझो। और अब इस बुढ़ापे में बदलना बड़ा कठिन है। तुम एक काम करना, जब भी तुम देखो कि मैं कोई कपड़ा चुरा रहा हूं, तुम इतना कह देना, उस्ताद जी! झंडी! जोर से कह देना, उस्ताद जी! झंडी! शिष्यों ने बहुत पूछा कि इसका मतलब क्या है? उसने कहा, वह तुम मत उलझो। मेरे लिए काम हो जाएगा। ऐसे तीन दिन बीते। दिन में कई बार शिष्यों को चिल्लाना पड़ता, उस्ताद जी! झंडी! वह रुक जाता। चौथे दिन लेकिन मुश्किल हो गई। एक जज महोदय की अचकन बनने आई। बड़ा कीमती कपड़ा था, विलायती था। उस्ताद घबड़ाया कि अब ये चिल्लाते ही हैं, झंडी! तो उसने जरा पीठ कर ली शिष्यों की तरफ और कपड़ा मारने ही जा रहा था कि शिष्य चिल्लाए, उस्ताद जी, झंडी! उसने कहा, बंद करो नालायको! इस रंग का कपड़ा वहां था ही नहीं। क्या झंडी-झंडी लगा रखी है? और फिर हो भी तो जहां इतनी झंडियां लगी हैं, एक और लग जाएगी। ऊपर-ऊपर के नियम बहुत गहरे नहीं जाते। सपनों में सीखी बातें जीवन का सत्य नहीं बन सकतीं। भय के कारण कितनी देर सम्हलकर चलोगे? और लोभ कैसे पुण्य बन सकता है? तो दान अगर लोभ से दिया, पाप हो गया; क्योंकि लोभ बाहर ले जाता है। दान अगर भय से दिया, पाप हो गया; क्योंकि भय बाहर ले जाता है। अभय लाता है भीतर, अलोभ लाता है भीतर। इसलिए बंधी लकीरों का सवाल नहीं है। लकीरों पर तो बहुत लोग चलते हैं, पहुंच नहीं पाते। जिंदगी कोई रेलगाड़ी नहीं है कि पटरियों पर दौड़ जाए। बंधी पटरियों पर कोई कभी परमात्मा तक नहीं पहुंचा है। काश, इतना आसान होता! ___ इसलिए तो तुम्हें इतने लोग दुनिया में दिखाई पड़ते हैं, उनमें से बहुत से लोग सोच-समझकर पुण्य करते रहते हैं, फिर भी पुण्य होता नहीं। ___ असली सवाल कृत्य का नहीं है। असली सवाल तो कृत्य तुम्हें पास लाता है या नहीं। अगर यह कसौटी तुम्हारे भीतर बनी रहे कि जो तुम्हें होने के करीब ले आए वही पुण्य है, तो तुम धीरे-धीरे पाओगे, प्रत्येक कृत्य से ध्यान की किरण निकलने लगी। और तुम्हारे पास एक कसौटी है जिससे तुम तौल लोगे-क्या करना है और क्या नहीं करना है। कृत्य का इतना ही मूल्य है। कृत्य का अर्थ है, तुम कुछ करोगे। करने में साक्षी-भाव न खो जाए। अगर साक्षी-भाव खो गया तो कर्म बंधन बन जाता है। अगर साक्षी-भाव बना रहा तो कर्म तुम्हें बांधता नहीं, साधारण सा कृत्य रह जाता है। उसका कोई बल नहीं रह जाता। क्योंकि कृत्य को बल तो तुम देते हो, अपने तादात्म्य से। जब तुम किसी कृत्य से जुड़ कर कर्ता हो जाते हो, तभी बल मिलता है कृत्य को। उसी बल से तुम बांधे जाते हो। 100
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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