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________________ लुत्फ-ए-मय तुझसे क्या कहूं!! ऐसा लगता है कुछ समझे भी, कुछ नहीं भी समझे। कुछ धुंधला-धुंधला रह जाता है। अब यह बड़े मजे की बात है। कवि की बात धुंधली है, वह तुम्हें साफ समझ में आ जाती है। ऋषि की बात बिलकुल साफ है, वह तुम्हें धुंधली मालूम पड़ती है। क्योंकि भाषा का भेद है। ऋषि किसी और ही लोक की बात कर रहा है। लाओ उसे भी रख दें उठाकर शबे-विसाल हायल जो एक खलीफ सा पर्दा नजर का है ऋषि और कवि में इतना ही फर्क है। ऋषि की अपनी कोई नजर नहीं है। उसके पास अपना कोई दृष्टिकोण नहीं है। झीना सा पर्दा भी नहीं है उसके पास अपने मत का। उसके पास अपना कोई मन नहीं है। झीना सा पर्दा भी नहीं है उसके पास मन का। उसने अपने को पोंछ दिया बिलकुल। सत्य सत्य की तरह ही प्रगट होता है। कवि अपने मन के झीने पर्दे से सत्य को देखता है। वह झीना पर्दा उस सत्य पर हावी हो जाता है। लाओ उसे भी रख दें उठाकर शबे-विसाल । इस मिलन की रात में, अब उसे भी उठोकर अलग रख दें। हायल जो एक खलीफ सा पर्दा नजर का है एक जो झीना सा पर्दा बीच में है, उसे भी हटा दें। जिस दिन कवि उसे हटा देता है, उसी दिन ऋषि हो जाता है। सभी ऋषि कवि हैं, लेकिन सभी कवि ऋषि नहीं हैं। चाहे ऋषियों ने वक्तव्य गद्य में दिया हो, चाहे पद्य में; वे सभी कवि हैं। चाहे उन्होंने अपनी वाणी को संगीत के छंदों में बांधा हो, न बांधा हो; लेकिन जब भी कोई ऋषि बोलता है तो उसका शब्द-शब्द छंदबद्ध है। यह छंदबद्धता भाषा की नहीं है, अंतर-अनुभव की है। जब ऋषि बोलता है तो बोलता नहीं, वह भी गाता है। चाहे तुम्हारे गाने के ढांचे में उसका गाना बैठता हो न बैठता हो, चाहे वह तुम्हारे मात्राओं और छंद के नियम मानता हो न मानता हो, तुम्हारी व्याकरण और भाषा के सूत्र उपयोग करता हो न करता हो। लेकिन जब भी कोई ऋषि बोलता है, गाता है; बोलता नहीं। जब चलता है, चलता नहीं, नाचता है। तुम्हें दिखाई पड़ता हो न पड़ता हो, क्योंकि तुम्हारी आंख पर अभी मन का पर्दा है। कवि अगर मन को हटा दे-मन को हटाने का अर्थ है, विचार को हटा दे। विचार को हटाने का अर्थ है, ध्यान के माध्यम से सत्य को देखे, विचार के माध्यम से नहीं। बस, ऋषि हो गया। कभी-कभी छलांग लगा लेता है, कभी-कभी एक झलक उसे मिल जाती है पार की। लेकिन बस, वह झलक है। ऋषि वहां जीता है, जिसकी झलक कवि को मिलती है कभी-कभी। ऋषि उस मंदिर में निवास करता है, जिसके शिखर कभी-कभी कवि के स्वप्नों में झलक जाते हैं। ऋषि की वह अवस्था है। काव्य कवि के जीवन का एक छोटा सा खंड है। ऋषि 85
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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