SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो के जीवन की अवस्था है कविता। इसलिए तुम अगर किसी कवि की कविताओं को बहुत प्रेम करो तो भूलकर भी कवि को मिलने मत जाना। नहीं तो खंडित हो जाएगा तुम्हारा प्रेम। क्योंकि कवि को तुम साधारण आदमी पाओगे। शायद साधारण से भी ज्यादा गिरा हुआ पाओ। कविता और बात है। वह तो कुछ क्षण थे अनूठे, जो उसके जीवन में उतरे। उनको गाकर वह चुक गया। वह फिर साधारण आदमी हो जाता है। कभी-कभी तुमसे भी गिरा हुआ तुम उसे पाओगे। इसलिए अच्छा हो, कविता को जान लेना, प्रेम कर लेना, कवि को खोजने मत जाना। वह कहीं किसी पान की दुकान पर बीड़ी पीता मिल जाएगा; कि किसी भजिए की दुकान के सामने खड़ा हुआ भजिया खा रहा होगा। तुम सोच ही न पाओगे। या किसी नाली में पड़ा होगा शराब पीकर। ___ तुमने जो सुगंध उसके गीत में पाई थी, तुम उसमें न पाओगे। वह उसके जीवन की गंध नहीं है। उतर आई थी, झलकी थी। ऐसा समझो कि अंधेरी रात में बिजली चमक गई और एक झलक दिख गई। यह एक बात है। और दिन की सूरज की रोशनी में चलना बिलकुल दूसरी बात है। उसने बांध लिया उसको अपने शब्दों में। बांधने के बाद वह भी वहीं खड़ा हो जाता है, जहां तुम खड़े हो। बांधने के बाद वह भी साधारण हो जाता है। एक स्पर्श हुआ था। इसलिए तो कवि कहते हैं कि जो हमने लिखा, जो हमने गाया, वह हमने गाया यह पक्का नहीं है। जैसे कोई और हममें गा गया। वह बात इतनी फासले की है कि उनको खुद ही लगती है कि कोई और हममें गा गया। जैसे कोई और हममें उतर आया, अवतरित हुआ। कोई नहीं उतर आया, उन्होंने ही एक छलांग ली थी; लेकिन छलांग थी। जैसे जमीन पर तुम खड़े हो और छलांग ले लो, तो एक क्षण को तुम जमीन से उठ जाते हो, फिर वापस जमीन पर आ आते हो। यह एक बात है। और तुम्हें पंख लग जाएं, तब बात और है। ऋषि उड़ता है आकाश में, कवि छलांग लेते हैं। फिर-फिर लौट आते हैं। फिर उसी भूमि पर खड़े हो जाते हैं। ___ अक्सर तो यह होता है कि छलांग लेने वाला खड़ा भी नहीं हो पाता; बैठ जाता है। थकाती है छलांग। इसलिए अक्सर कवि तुमसे भी नीचा हो जाता है लौटकर। तुमसे ऊंचा हो लेता है छलांग में, तुमसे नीचा हो जाता है लौटकर। शिखर छू लेता है छलांग में, गिर जाता है खाई में लौटकर। कवि को चुकाना पड़ता है खाई में गिरकर वह मूल्य, जो उसने छलांग लेकर शिखर छूने में पाया। हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है। ऋषि शिखर पर रहता है। ऐसा कहना भी ठीक नहीं, ऋषि शिखर हो जाता है। रहने में भी थोड़ी दूरी है। रहने में भी डर है, कभी गिर जाए। रहने में भी डर है, कभी 86
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy